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सनातन धर्म और संस्कृति से प्रभावित यूरोपीय व्यक्तित्व

सनातन परंपरा एक खुली हुई जीवन-व्यवस्था है, जो भी इसे अपने जीवन में आदर्श व्यवस्था के रूप में अपनाना चाहे, उसके लिए यह बिना किसी शर्त, बंधन या अनुबंध के शुद्ध प्रेम से अपनी बांहें खोले हुए तैयार है। इसकी ज्ञान और भाव-संपदा इतनी अधिक है कि हर व्यक्ति अपनी क्षमता भर झोली और अंजुलि भर सकता है।

यही कारण है कि इससे अभिभूत होकर बहुत से विदेशियों ने इसे जीवन व्यवस्था या धर्म की तरह अपना लिया है।सनातन धर्म बड़े-बड़े गुणों का समूह है। दान, जीवमात्र पर दया, ब्रह्मचर्य, सत्य, दयालुता, धीरज और क्षमा, इन गुणों का योग सनातन धर्म का सनातन मूल है। इन गुणों के कारण ही सनातन धर्म अन्य धर्मों से विशिष्ट है।

आज हम “चुभन पॉडकास्ट” पर जिनसे मिलेंगे, उन्होंने भी भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म से प्रभावित होकर इसे पूरी तरह अपना लिया और यही के होकर रह गए।

आप है महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानेश्वर पुरी जी, जिनका जन्म क्रोएशिया में हुआ जो दक्षिण-पूर्व यूरोप में बसा एक देश है।

आपने अनगिनत पुस्तकों का संपादन किया तथा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में अपने व्याख्यान प्रस्तुत किये।
आपने हनुमान चालीसा का संस्कृत और अंग्रेजी में अनुवाद किया। रामचरितमानस का क्रोशियन भाषा मे अनुवाद किया, इनके अलावा आपने अनेकों संस्कृत लेखों का अंग्रेजी व क्रोशियन भाषा मे अनुवाद किया।

आपसे बात करके सनातन धर्म के प्रति आपकी कितनी अटूट आस्था है, इसका पता चल जाता है। “चुभन पॉडकास्ट” पर मेरे साथ संवाद करते हुए आपका कहना था कि यूरोपीय देशों में ईसाइयत से पहले सनातन धर्म ही था, आपका कहना है कि इसके प्रमाण भी हैं। उन्होंने बताया कि टर्की में सबसे पुराना शिवलिंग मिला। आपका कहना है कि सनातन धर्म पूरे विश्व में था और यूरोप में तो अवश्य ही था, ईसाइयत ने दुर्भाग्यवश इसे दबा दिया।

आपके कार्यों से प्रभावित होकर आपको अनेकों सम्मानों से भी सम्मानित किया जा चुका है, जिनमे से कुछ इस प्रकार हैं –
1. पंडित मधुसूदन ओझा वेद विज्ञान सम्मान 2019
2. महाकवि माघमहोत्सव 2017 (राजस्थान संस्कृत अकादमी, जयपुर)
3. भारतीय अनुसंधान दार्शनिक परिषद सहभागिता सम्मान ( नई दिल्ली)
4. योगविज्ञान परिषद, जयपुर द्वारा सम्मानित।

आप क्रोएशिया से कैसे भारत आए और फिर यहां सनातन धर्म को आपने पूरी तरह स्वीकार किया, उनके इस आध्यात्मिक सफर के बारे में जानने के लिए “चुभन पॉडकास्ट” पर हुए उनके साथ मेरे संवाद को सुनें।

5 thoughts on “सनातन धर्म और संस्कृति से प्रभावित यूरोपीय व्यक्तित्व

  1. Great job. Excellent. Proud of you Maha mandleshwar Swami Gyaneshwar Puri Ji. Your contributions will go a long way in guiding the humanity as a whole.

    1. I am blessed that I am in contact with Mahamandleshwar Gyaneshwar ji since 1998. He is a pious soul and his devotion to sanatan dharm is unparalleled.

  2. Sabse prachin sabyeta hai koi toh woh hai sanatan.
    Baki sabka udgam hamare baad hua hai.
    Na hamere aadi ka pata hai na anadi ka. Ek nadi ki tarah hai hamari sanakriti bhehti ja rahi hai pyar shanti bhai charye ka Sandesh deti hui.
    Buhut Acha lekh likha hai apne.
    God bless you
    Maa Saraswati shower her blessings on you 🙏

    1. आपका आभार सर। आपने बिल्कुल ठीक कहा और आप इतनी तन्मयता से हमारे कार्यक्रम सुनते हैं, बहुत अच्छा लगता है।

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