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वोट की गोट में आपा खोते नेता

जैसा कि मैं पहले भी कई बार लिख चुकी हूँ और फिर आज एक बार लिख रही हूँ कि मेरी राजनीति में कोई भी रूचि नही है और न ही किसी राजनीतिक दल से मेरा कोई लेना-देना है लेकिन एक आम नागरिक की हैसियत से अपने अधिकारों और कर्तव्यों दोनों का निर्वहन करते हुए मैं हर बात के लिए स्वयं भी जागरूक रहने की कोशिश करती हूँ और मेरा मानना है कि इस देश के हर नागरिक को हर बात की ख़बर होनी चाहिए और उन बातों को लेकर जागरूकता भी होनी चाहिए लेकिन विडंबना यह है कि हमारे देश में या तो अति जागरूकता है या फिर लोग इतने ज़्यादा निर्लिप्त भाव से रहते हैं कि उन्हें कोई लेना-देना ही नही देश में चाहे कुछ भी हो जाए।अति जागरूकता और अति निर्लिप्तता दोनों ही देश और समाज के लिए अति घातक हैं और यही कारण है कि विभिन्न राजनीतिक दल अपनी-अपनी मनमानी करते हैं जो कि प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के लिए ठीक बात नही है।

                        इधर चुनावी माहौल में हम सभी देख रहे हैं कि विभिन्न राजनीतिक दल क्या कुछ नही कर रहे और लक्ष्य सबका सत्ता हथियाना ही है लेकिन ऊपर से सभी का यह कथन कि हम तो देश वासियों की सेवा करना चाहते हैं।इतना ज़्यादा ये नेता आम जनता को बेवकूफ समझते हैं कि उनके कर्मों पर ही हंसी आती है।लगभग सभी दलों के नेता ऐसा-ऐसा बोल जाते हैं कि शर्म आती है इन्हें अपना नेता कहते।अरे नेता मतलब जो नेतृत्व करे और ऐसे लोग नेतृत्व तो क्या ही करेंगे जिनके अपने दिमाग ही इतने कुंठित और गंदे हैं।इधर लगभग सभी राजनीतिक दल की महिला नेताओं ने भी अति कर दी है।ऐसे-ऐसे बयान सामने आ रहे हैं कि शर्म से सर झुक जाता है।अभी दो-तीन दिन पहले की घटना से आप सभी परिचित होंगे ही जब बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा की तरह दिखाने वाली हावड़ा की भाजपा कार्यकर्ता प्रियंका शर्मा को कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ा।यह तो अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रियंका शर्मा की याचिका स्वीकार कर ली लेकिन क्या ज़्यादा अच्छा यह न होता कि उसे पश्चिम बंगाल में ही राहत मिल जाती?प्रियंका ने फोटोशॉप के जरिये ममता बनर्जी को प्रियंका चोपड़ा जैसे परिधान में दिखा दिया।यह कोई ऐसा काम नही जिस पर किसी को गिरफ्तार कर लिया जाए।क्या किसी लोकतान्त्रिक देश में ऐसे किसी कानून के लिए कोई स्थान हो सकता है जिसमे फोटो में मामूली छेड़छाड़ के आरोप में किसी को गिरफ्तार कर लिया जाए।इन लोगों के लिए यह फोटो अरुचिकर तो हो सकती है लेकिन उसे आपत्तिजनक नही कहा जा सकता।अगर राजनीतिक द्वेषवश अरुचिकर और आपत्तिजनक में भेद करने से बचा जाएगा तो फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए कोई स्थान नही रह जाएगा और लोगों का उत्पीड़न भी शुरू हो जाएगा।हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बंद प्रियंका शर्मा को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है और साथ ही उसे ममता बनर्जी से माफ़ी मांगने को कहा है।

                         इन सब बातों से तो अब अपने विचारों को अभिव्यक्त करने में ही डर लगने लगा है।बड़ी हैरानी होती है कि अब हमारे बुद्धिजीवी वर्ग को कुछ भी दिखाई या सुनाई क्यों नही दे रहा है?कार्टून बनाने की परंपरा तो हमारे देश में वर्षों से है।महान कार्टूनिस्ट आर.के.लक्ष्मण तो राजनीतिक पार्टियों के बड़े-बड़े नेताओं के कार्टून बनाते थे और वे नेता भी उन्हें बड़े हलके-फुलके ढंग से लेते थे।जवाहरलाल नेहरु,इंदिरा गाँधी से लेकर आज के प्रधानमंत्री मोदी जी के न जाने कितने मीम आ चुके हैं और कार्टून के जरिये इन नेताओं पर खूब व्यंग्य बाण छोड़े जाते रहे हैं लेकिन ऐसी परिस्थितियां तो कभी नही बनीं और उसपर हद तो यह है कि यही ममता बनर्जी जो सबपर हमले कर रही हैं वे ही अपने ऊपर शोषण का इलज़ाम भी सबसे ज़्यादा लगाती हैं।लेकिन यह सब हमारे देश के तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग को नही दिख रहा।इस तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाने वालों के ख़िलाफ़ क्यों नही सब एक जुट होते हैं उसे किसी राजनीतिक दल से जोड़ कर ही क्यों देखा जाता है?अभी-अभी जब यह लेख पोस्ट करने मैं बैठी तो टी.वी.पर ममता बनर्जी के जोर-शोर से गा-गाकर नारे चल रहे हैं जिसमे वह जनता के आगे बोल रही हैं कि ‘चौकीदार चोर है’ और हद तो यह हो गई कि उसके बाद वे गाकर बोलने लगीं कि ‘गली-गली में शोर है’तो आगे से जनता चिल्लाई ‘चौकीदार चोर है’,।इतने में भी यह बुजुर्ग महिला नेता जो एक प्रदेश की मुख्यमंत्री है,वह संतुष्ट नही हुई और जनता को ज़ोर से बोलने का आवाहन करने लगी।यह देख कर मेरा मन इतना ज़्यादा खट्टा हुआ और दृश्य दिखा कि कैसे जब हम अँगरेज़ हुकूमत के गुलाम थे तो हमारे वीर नेताओं ने अपनी जान हथेली पर रख दी और उस समय के सीन हम देखते हैं कि कैसे ‘इंक़लाब जिंदाबाद’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे गूंजा करते थे और आज एक स्वतंत्र देश के प्रधानमंत्री के लिए उसी देश के एक प्रान्त की मुख्यमंत्री चोर के नारे लगवा रही है।किसी भी नेता के भाषण में सिर्फ गालियाँ या एक दूसरे को कोसना ही दिखाई देता है।कही पर भी कुछ क्रियात्मक नही दिखता।शर्म आनी चाहिए इस देश के हर नागरिक को कि वह यह सब क्यों बर्दाश्त कर रहा है?क्यों नही ऐसा करने वालों के हाथ से सत्ता छीन ली जाए?

                      हमारे देश में इतनी उदारता है कि ‘भारत का पिकासो’ कहे जाने वाले मक़बूल फ़िदा हुसैन जो सबसे ज़्यादा विवादित भी रहे लेकिन उन्हें इस देश के महान चित्रकारों में गिना जाता है और उन्हें पद्मश्री,पद्मविभूषण और पद्म भूषण जैसे अवार्ड मिल चुके हैं।इंडिया टुडे मैगज़ीन के कवर पेज पर भारत माता की नग्न तस्वीर बनाने के कारण हुसैन की काफी आलोचना हुई थी।इस तस्वीर में एक नग्न युवती को बतौर भारत माता दिखाया गया जो भारत के नक़्शे पर लेटी हुई थी।हुसैन ने माँ दुर्गा,लक्ष्मी और सरस्वती की भी नग्न तस्वीरें बनाई थीं उन्होंने 1970 में ये पेंटिंग बनाई मगर इन पेंटिंग्स को ‘विचार मीमांसा’ नाम की मैगज़ीन ने 1996 में छापा था।इन अश्लील पेंटिंग्स को बनाने के कारण देश भर में हुसैन का काफी विरोध हुआ लेकिन उन्हें कोई सजा नही मिली और बस एक वर्ग द्वारा इस बात का विरोध होकर रह गया।मुझे गुस्सा आता है यह सोच कर कि क्यों नही उस समय पूरे देश के बुद्धिजीवी वर्ग ने इस तरह हिन्दू देवी देवताओं के नग्न चित्र बनाने का विरोध एकजुट होकर किया?मैं जानती हूँ कि ईश्वर हमारे ह्रदय में वास करते हैं लेकिन कुछ भी हो यह प्रतीक हमारी आस्था से जुड़े हैं।फिर वही बात आ जाती है जो सुनने में कुछ लोगों को कड़वी लग सकती है कि जब भी हिन्दू धर्म को नीचा दिखाने की कोशिश होती है या खूब अपमान किया जाता है तब किसी को भी बोलने में इसलिए तकलीफ होती है कि यदि वे बोले तो उन पर साम्प्रदायिक होने का ठप्पा लग जाएगा लेकिन यही पर मैं एक बात पूछना चाहूंगी कि जिस तरह हुसैन ने अपनी कला का हवाला देकर हिन्दू धर्म के देवी देवताओं के इस तरह अश्लील चित्र बनाए क्या वे इसी तरह मुस्लिम धर्म की आस्था को चोट पंहुचा सकते थे?क्या पैगम्बर साहब के चित्र के साथ कोई छेड़-छाड़ कर सकते थे?जवाब होगा नहीं।क्योंकि उनकी इतनी हिम्मत ही न होती।वहां तो फतवे जारी हो जाते और सर कलम करने तक के आदेश हो जाते।हुसैन साहब ने बाद में भारत छोड़ दिया था और वे लन्दन और दोहा में रहने लगे।बाद में उन्हें क़तर की नागरिकता मिल गई।मुस्लिम देश क़तर की नागरिकता स्वीकार करने के बाद हुसैन ने इतराते हुए कहा था “क़तर में मैं पूरी आज़ादी का आनंद ले रहा हूँ,यहाँ मेरी अभिव्यक्ति की आज़ादी पर किसी का अंकुश नही है।”हंसी आती है कि किस अभिव्यक्ति की आज़ादी की बात हुसैन कर रहे हैं?अब तो हुसैन साहब इस दुनिया में नही हैं लेकिन मैं उनका साथ देने वाले लोगों से जानना चाहूंगी कि जिस संयुक्त अरब अमीरात के क़तर की नागरिकता उन्होंने स्वीकार की,वहां के किसी पूजनीय देवता का नग्न अश्लील चित्र बना कर दिखाते तब उन्हें अभिव्यक्ति की आज़ादी की सच्चाई नज़र आ जाती।उन्होंने भारत माता का और हमारे देवी देवताओं का घोर अपमान किया लेकिन इस देश के नागरिकों ने ही उन्हें उनकी गलती का एहसास न कराकर उन हिन्दू संगठनों को ही दोषी कहा जिन्होंने इन चित्रों का विरोध किया।अरे यहाँ हिन्दू मुस्लिम वाली बात क्यों लाई जाती है इन हिन्दू संगठनों के साथ मिलकर इन तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग को आगे आना चाहिए था और भारत माता तथा देवी देवताओं का अपमान करने वाले को उसकी गलती का एहसास कराना चाहिए था।इससे देश में साम्प्रदायिकता का माहौल ख़त्म होने में मदद मिलती और किसी भी धर्म पर आंच आने की शुरुआत ही न होती लेकिन यहाँ तो इतनी गन्दी परम्पराएं चल पड़ी है कि ममता बनर्जी का चित्र जो प्रियंका चोपड़ा जैसी कलाकार जो कोई कुख्यात शख्सियत नही है उनके जैसा दिखा देने पर तो उस कलाकार को जेल हो जाती है लेकिन देवी देवताओं के अश्लील चित्र कला का प्रतीक माने जाते हैं।कैसे बुद्धिजीवी हैं जो इस प्रकार की पेंटिंग्स में भी “कलाकार” की स्वतंत्रता ढूंढते हैं?जब डेनमार्क का कार्टूनिस्ट अथवा कोई अन्य ईसाई कलाकार मोहम्मद साहब के कार्टून अथवा कोई काल्पनिक ग्राफिक्स बनाता है तो क्या वह कला नही है?उसका विरोध तो पूरे विश्व में हो जाता है लेकिन हुसैन जैसों की पेंटिंग्स में क्योंकि हिन्दू देवी देवताओं का अपमान होता है और हिन्दू स्वयं ही अपने धर्म के लिए एकजुट नही हैं यहाँ तो अपमान चाहे किसी का हो जाए लेकिन अपनी अपनी राजनीति बस सबको करनी है।यहाँ ऐसा दोहरा मानदंड क्यों?  

                    इसी तरह अभिनेता से राजनेता बने कमल हासन ने चुनाव प्रचार के दौरान ऐसा बयान दे दिया कि उसपर भी हैरानी होती है कि ये सब लोग कलाकार हैं।कलाकार तो शुद्ध ह्रदय का होता है और इन सबके दिल में एक धर्म के लिए इतना कलुष।तमिलनाडु में कमल हासन ने कहा कि आज़ाद भारत का पहला आतंकवादी हिन्दू था और उसका नाम नाथूराम गोडसे था।यही से आतंक की शुरुआत हुई थी।वाह! क्या मासूमियत से ऐसे लोग इतनी घृणित बयान दे जाते हैं।

                   इस तरह की बातों की चर्चा करने के बाद कहने को कुछ रह नही जाता हालाँकि मुझे पता है कि कुछ लोगों को मेरी यह बातें शायद किसी एक समुदाय के प्रति मेरी भी कट्टरता लगें लेकिन फिर मैं भी अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए स्वतंत्र हूँ और मैं सिर्फ इतना जानती हूँ कि हिन्दू धर्म कोई आज का नही है हजारों वर्ष पुराना है और इसके जितना उदार कोई भी धर्म नही है तभी अपने मंदिर और उसकी मूर्तियों के तोड़े जाने के बावजूद कभी हमने उफ़ नही की और उन बातों को भूलकर सबको साथ लेकर चलने की भी कोशिश रही लेकिन बार-बार अपमान सहने के लिए हमें ही चुना गया।अपमान सहने के बाद अगर ज़रा सी उफ़ भी की गई तो उन्हें साम्प्रदायिक बना दिया गया।मेरी बात शायद एक नज़र में बहुत से लोगों को अच्छी न लगे लेकिन ज़रा सा ठहर कर एक बार सोचिये कि कहाँ पर क्या-क्या गलत हुआ है और अभी भी हो रहा है?आइये सब मिलकर उसे सुधारने की कोशिश करें।

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