आज विश्व के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश भारत के लिए बहुत ही शुभ दिन है जब इतने अधिक बहुमत के साथ और अब तक के सबसे ज़्यादा वोट प्रतिशत के साथ चुनी हुई सरकार हम सबको प्राप्त हुई है।हमें खुले मन और सकारात्मकता के साथ इसे स्वीकार करना चाहिए।सबके अपने-अपने विचार और नीतियां हो सकतीं हैं लेकिन उद्देश्य एक ही होना चाहिए देश का विकास और आम जन का भला।यह तब ही संभव है जब सब मिलकर काम करें और करने भी दें।इधर तीन-चार महीने से हम सबने महसूस किया है कि राजनीति के नाम पर क्या कुछ नही अनर्गल बोला और किया गया।सारी मर्यादाएं ताक पर रख दी गईं।किसी की उम्र और उसके पद तक की भी परवाह नही की गई।आज के दिन मैं उन बातों को दोहराना नही चाहती और वैसे भी इन सारी बातों से हम सभी भली-भांति परिचित हैं।
हम आज़ाद हुए और एक प्रजातान्त्रिक सरकार हमें मिली और हमने एक स्वतंत्र देश में सांस ली लेकिन आज 72 वर्ष बीत गये हमें आज़ाद हुए और अभी भी उस समय के लोग हमारे बीच हैं जिन्होंने गुलामी का समय देखा और भोगा है।ज़रा उनसे कभी बात करके देखिये कि उन्होंने क्या कुछ दुःख और तकलीफ नही सही और देश की आजादी के लिए क्या कुछ नही कुर्बान किया?फिर भी हम उस आज़ादी का नाश करने में लगे हुए हैं जिसे प्राप्त करने के लिए क्या कुछ नही किया गया।
इस सम्बन्ध में दो बातें हैं जो मुझे बहुत चुभन देती हैं।जिन्हें मैं लिखूंगी तो कोई अन्यथा न ले और न ही यह सोच रखे कि मैं किसी एक राजनीतिक दल या विचारधारा से जुड़ी हुई हूँ क्योंकि मैं इतने वर्षों से जो भी देख और समझ पा रही हूँ उससे मेरी यह धारणा बनी है।क्या कारण है कि जब से देश आज़ाद हुआ तब से सिर्फ एक ही राजनीतिक दल और उसमें भी केवल एक ही परिवार छाया रहा।नेहरु जी के बाद इंदिरा गाँधी तक तो कुछ सह भी लिया जाए लेकिन क्या कोई राजशाही थी कि इंदिरा जी के देहांत के बाद उनके पुत्र राजीव गाँधी को ही प्रधानमंत्री बनाया जाता जिनका कोई राजनीतिक अनुभव भी नही था।हद तो तब हो जाती है जब राजीव जी के असामयिक निधन के बाद उनकी ही पत्नी द्वारा चलाई गई रिमोट कंट्रोल सरकार चलती रही और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी की क्या हैसियत थी यह मुझे बताने की ज़रूरत नही है।यह बात लिखने का मेरा सिर्फ यह उद्देश्य है कि हम समझें कि कितना एक ही परंपरा से जीने के हम आदी हो चुके थे कि उस राजशाही के अंत को स्वीकार करने में हमें इतना समय लगा लेकिन आज का परिणाम यह दिखाता है कि हमने अपने को बेड़ियों से आज़ादी देने की राह में क़दम रख दिए हैं और अपनी सोच और विचारधारा पर आज लग रहा है कि एक-एक नागरिक चल पड़ा है।
दूसरी बात जो मुझे चुभन दे रही है वह यह है कि देश आज़ाद हुए इतने वर्ष बीतने के बाद भी आज की हमारी पीढ़ी यह नही जान पाई है कि इसे स्वतंत्र कराने में किनके योगदान रहे हैं?कुछ एक परिवार या व्यक्ति ही लगता है इस देश में स्वतंत्रता का सूरज लाए थे लेकिन इतनी समझ तो सबको होनी चाहिए कि यह कुछ व्यक्तियों द्वारा किया गया कार्य नही हो सकता।बचपन से हम इन पंक्तियों को सुनते आए हैं कि “दे दी हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल,साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल” ।इसमें कोई संदेह ही नही कि देश को गुलामी से आज़ाद करने में महात्मा गाँधी का योगदान भुलाया नही जा सकता लेकिन क्या सच में बिना खड़ग और बिना ढाल के ही हमें सिर्फ महात्मा गाँधी के योगदान से ही सफलता मिल गई?अगर ऐसा है तो भगत सिंह,सुखदेव,राजगुरु,चंद्रशेखर आज़ाद,सुभाष चन्द्र बोस जैसे महान क्रांतिकारियों के योगदान को हमें भुलाना होगा और शायद आज़ादी के बाद उन्हें भुला ही दिया गया।तभी तो जिन भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव के हौंसलों से और ख़ुशी-ख़ुशी फांसी के फंदों पर झूलने से अँगरेज़ भी डर गये थे और कहते हैं कि उनकी जड़ें इस देश से उखड़ने की शुरुआत तो इन क्रांतिकारियों की वीरता से ही हो गई थी,उन वीर क्रांतिकारियों की याद में क्या किया जाता है?भगत सिंह की माँ किस हाल में मरी यह किसी से छुपा नही है।आज का दिन यह सब चर्चा करने का नही है इसलिए मैं किसी दिन फिर इस विषय पर लिखना चाहूंगी और अपने इन वीर शहीदों जो कि हमारी पीढ़ी के लिए भगवान हैं,अपनी नम आँखों से उनकी बातों को याद करके श्रद्धांजलि देना चाहूंगी।जो लोग केवल कुछ लोगों के योगदान तक ही इस देश को देखते हैं उन्हें मैं अंत में एक बात कहना चाहूंगी कि वे अंडमान-निकोबार जाकर वहां की सेल्युलर जेल जहाँ काला पानी की सज़ा होती थी, वहां कुछ घंटे बिताएं और उन लोगों ने क्या कुछ नही झेला अपनी भारत माता के लिए इस बात का अनुभव करें।उन लोगों के कष्टों को पढ़ कर आप रो पड़ेंगे और अपने आप को धिक्कारेंगे कि जिन लोगों के त्याग से हम आज़ाद मुल्क में सांस ले रहे हैं उनके लिए हमने कुछ करना तो दूर उल्टा उनके सपनों को ही चकना चूर कर दिया।
बस आज के दिन मेरा यही निवेदन है कि हम सब इस देश को नकारात्मकता,वंशवाद,जातिवाद,तुष्टिकरण और सेकुलरिज्म वाली विचारधारा से बचाएं और अपने राष्ट्र को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दें।