मैंने अपने पॉडकास्ट के इस पहले एपिसोड में उसका परिचय दिया है।मेरे बहुत सारे पाठकों/श्रोताओं ने पॉडकास्ट(Podcast) का नाम सुना ज़रूर होगा।अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों में तो यह बहुत ही प्रसिद्ध है परंतु हमारे देश मे अभी इसका आरंभिक दौर है।ऐसे में मेरे बहुत से पाठक /श्रोता इससे अनजान भी हो सकते हैं।इसलिए आसान भाषा में इसे ‘इंटरनेट का रेडियो’ कह सकते हैं।पॉडकास्ट दो शब्दों से मिलकर बना है-‘पॉड ‘ जो कि आईपॉड या मोबाइल से लिया गया है और दूसरा शब्द ‘कास्ट’ रेडियो ब्रॉडकास्ट से लिया गया है, इन दोनों शब्दों को मिलाकर पॉडकास्ट बना है यानी आईपॉड या मोबाइल से जिसका ब्रॉडकास्ट या प्रसारण हो तो इस तरह अब मैंने अपने पाठकों जोकि मेरे श्रोता भी बन गए हैं, उनके लिए अपना रेडियो स्टेशन बनाया है जहां हम आपस में बात करेंगे।मैं अपने विचार पहले सिर्फ लिखकर ही आपके साथ साझा करती थी अब आप मेरी आवाज़ में भी अपने कार्यक्रम सुन सकेंगे।अपने मनपसंद कलाकारों,विद्वानों या विभिन्न क्षेत्र में कुछ अलग कार्य करने वाले लोगों को,जिन्हें उचित प्लेटफ़ॉर्म नहीं मिल पाता,उन्हें भी मैं अपने इस पॉडकास्ट का हिस्सा बनाने की कोशिश करूँगी।बस अभी शुरुआत है इसलिए आप अपने सुझाव और प्रतिक्रिया देकर मेरा सहयोग अवश्य करें।
अपने पहले ही पॉडकास्ट में मैं क्या-क्या बात करती मुझे कुछ समझ ही नही आ रहा था।सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सेटेलाइट चैनल और भी न जाने क्या-क्या माध्यम हैं हमारे मनोरंजन, ज्ञानवर्धन और जानकारियों के परंतु मुझे तो आज भी जो मज़ा और अपनापन रेडियो सुनकर आता है वह और किसी तरह नहीं।कह सकते हैं कि हमारे नाना-नानी,दादा-दादी ,माता-पिता,हम लोग और आगे की भी जनरेशन -सभी पर रेडियो का जादू तो रहा ही है और रहेगा भी।सदियां बीत गयीं रेडियो के दीवानों की और लगता है इसकी दीवानगी में सदियां ही बीतेंगी।रेडियो का यह मज़ा है कि इसे हम ड्राइविंग करते हुए,घर के काम करते हुए या कुछ भी करते हुए सुन सकते हैं और कुछ न करते हुए भी सुन सकते हैं।
यह तो छोटा सा पॉडकास्टिंग का परिचय मैंने दिया लेकिन आजकल कोरोना कोविड-19 की वैश्विक महामारी को भूलकर कुछ और ही बात की जाए ऐसा हो नहीं सकता।इसने हम सबके दिल और दिमाग पर बहुत ही असर डाला है और हम सबको उदासी,निराशा और दुख के माहौल में ढकेलने का हर सम्भव प्रयास किया है लेकिन हमने भी इस परेशानी की घड़ी में हिम्मत रखी है और आगे भी रखेंगे।गोपालदास नीरज जी की यह पंक्तियां आज के माहौल पर कितनी सटीक बैठती हैं-
” जिन मुश्किलों में, मुस्कुराना हो मना
उन मुश्किलों में ,मुस्कुराना धर्म है।”
इस कठिन समय में हममें से हरेक के साथ ऐसा कुछ ज़रूर हुआ है कि बहुत से ऐसे लोग,जिन्हें हम अपना रिश्तेदार या सगा नहीं समझते थे,उन्होंने भी हमारा अपना बनकर साथ दिया और हमें दुख की इस घड़ी से उबारा तो इसलिए हर पल उस ईश्वर का, वक़्त का और उन अपनों का जो कहीं से भी सगे-संबंधी नहीं थे पर उनसे बढ़कर हमारे लिए अपने निकले,शुक्रिया अदा करें।
तो इन्हीं बातों के साथ आज की बात ख़त्म और अपने अगले पॉडकास्ट में हम जल्दी ही मिलेंगे।