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पद्मश्री कलीमुल्लाह खां साहब से एक मुलाक़ात

“ये माना ज़िंदगी है चार दिन की बहुत होते हैं यारों चार दिन भी।” -फिराक़ गोरखपुरी वास्तव में ज़िंदगी होती तो चार ही दिन की है और चार दिन होते भी काफी हैं,परंतु हममें से ज़्यादातर लोग उसमें से दो दिन तो यह सोचने में गुज़ार देते हैं कि हमें करना क्या है ? बाकी […]

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कोरोना योद्धा शोरी जी के जज़्बे को सलाम

“अंत में मित्रों इतना ही कहूंगा कि अंत महज़ एक मुहावरा है जिसे शब्द हमेशा अपने विस्फोट से उड़ा देते हैं और बचा रहता है हर बार वही एक कच्चा-सा आदिम मिट्टी जैसा ताज़ा आरम्भ जहां से हर चीज़ फिर से शुरू हो सकती है।” – केदारनाथ सिंह इन पंक्तियों को मैं हमेशा याद रखती […]

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रंगमंच:एक विमर्श

“लाई हयात, आए, क़ज़ा ले चली, चले अपनी खुशी न आए न अपनी ख़ुशी चले बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे पर क्या करें जो काम न बे-दिल्लगी चले कम होंगे इस बिसात पे हम जैसे बद-किमार जो चाल हम चले सो निहायत बुरी चले हो उम्रे-ख़िज़्र भी तो भी कहेंगे […]

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स्त्री की धरती, स्त्री का आसमान

“वह ऊष्मा है ऊर्जा है प्रकृति है पृथ्वी है क्योंकि – वही तो आधी दुनिया और पूरी स्त्री है।” -डॉ. शरद सिंह महिला सशक्तिकरण और इससे जुड़े तमाम विषयों पर ‘चुभन’ से प्रायः कई पोस्ट प्रकाशित होती रहती हैं और कई विद्वान-विदुषी व्यक्तित्व इस विषय पर आकर अपने-अपने विचार हमारे पाठकों और पॉडकास्ट पर श्रोताओं […]

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आवारा की बातें

दोस्तों, हम सभी कभी न कभी ऐसा महसूस करते ही हैं कि हम अपने उद्गार कहीं व्यक्त नहीं कर पा रहे या कोई ऐसा प्लेटफॉर्म हमें नहीं मिलता, जहां हम स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करें। हमारे ‘चुभन’ के प्लेटफॉर्म से काफी समय से जुड़े हुए बंगलुरू के वरिष्ठ साहित्यकार अजय ‘आवारा’ […]

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तू जी, ऐ दिल ज़माने के लिए

“अमृत कलश तो देवता लेकर चले गए विष ज़िंदगी का जो बचा सारा मिला हमें। ये आग, ये धुंआ, ये धुंधलका है सामने इस हाल में तो हर कोई हारा मिला मुझे।” – हनुमंत नायडू बात बिल्कुल सही है, जीवन दुखालय है और इसमें वही इंसान आंतरिक सुख और संतुष्टि का अनुभव कर सकता है, […]

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Blog दक्षिण भारत के रंग

तेलुगु साहित्य-विमर्श

Telugu Sahitya Vimarsh तेलुगु भाषा का अस्तित्व कब से आरंभ हुआ, इस दिशा में जो अनुसंधान हुए हैं, वे पर्याप्त नहीं हैं।जब तक निश्चित रूप से कोई प्रामाणिक सिद्धांत प्रतिपादित नहीं किया जाता, तब तक अनुमान के आधार पर किसी भाषा की उत्पत्ति का निरूपण करना न्यायसंगत न होगा।अग्निपुराण के वर्णन के आधार पर भी […]

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प्रतिभा और सामर्थ्य के विविध आयाम

साहित्य से दूरी हमें कहाँ ले जा रही ? 👆लिंक क्लिक कर इस रोचक लेख को भी अवश्य पढ़ें। बीता कुछ समय हम सबके लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रहा और आज भी मन यही चाहता है कि यह बुरा सपना हमारी आंख खुलने के साथ झूठ साबित हो और हम फिर अपनी […]

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क्या कोरोना (Corona) मानवीय संवेदना जगाएगा

“शब्द गूंगे हो गए हैं अर्थ बहरे हो गए हैं, वक़्त की हाराकिरी में घाव गहरे हो गए हैं।” – रामाश्रय सविता सच में आज वक़्त की हाराकिरी (आत्महत्या करने को जापानी में हाराकिरी कहते हैं ) , में ऐसे गहरे घाव मिले हैं, जिनसे शब्द और अर्थ ही गूंगे और बहरे हो गए हैं।इतने […]

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श्री राम का संघर्ष

हर तरफ कैसा कोहराम, कैसा मातम छाया हुआ है?हर चीज़ अपनी जगह पर स्थिर हो गयी है।कुदरत भी मानो रो रही है।पूरा विश्व ही मौत के आगोश में बैठा है।कब किसकी बारी आ जाए, इसकी शंका हर मन में रहती है।कितने अपनों को हम अपने सामने से जाता देख रहे हैं और कोई अपना अब […]

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