आज हम बंगलुरू की डॉ. इंदु झुनझुनवाला जी के बारे में बात करेंगे, जो कि एक कवयित्री, साहित्यकार, समीक्षक, कलाकार ,विचारक ,जीवन प्रशिक्षक, प्रोफेसर, अनुवादक , दार्शनिक, संस्थापक अध्यक्ष इत्यादि अनेक रूपों में हमारे सामने आती है, अनेकों सम्मान और पुरस्कारों से आपकी रचनाओं और कार्यों को सराहा गया है।
परंतु अपना परिचय वे स्वयं बहुत सुंदर शब्दों में देती हैं,
” मेरे लिए बस इतना ही, एक तलाश उन मोतियों की, जो मेरे, आपके, हम सबके अन्तर्मन में कहीं गहरे, बहुत गहरे छुपे हैं।
जिन्हें इन्तजार है मेरा ,आपका….हम सबका…..
यह तलाश ही बन जाती है जैसे मेरा जीवन….जो हरपल मुझे गिरकर सम्भलना सिखाती है…..डूबकर तैरने की कला सीखने में व्यतीत जैसे सारा जीवन और जो थोड़ा भी आँचल में आया…. उसे बाँटते रहने का अथक प्रयास……
इसी का हिस्सा मेरी कथाऐं, मेरा साहित्य, जिन्हें परकाया प्रवेश कर जिया है मैंने, महसूस किया है उनका दर्द, जो शब्दों में बयां करना आसान तो नहीं, पर उन्हें संवेदनशील हृदय द्वारा आँखों में झांककर दिल की धड़कनों तक पहुँचने का प्रयास अवश्य किया जा सकता है……”
डॉ. इंदु झुनझुनवाला जी अंतर्राष्ट्रीय संस्था ‘अभ्युदय’ की संस्थापिका और अध्यक्ष हैं, जिसके अंतर्गत 23 शाखाओं की स्थापना हुई, विदेशों में भी आपकी संस्थाएं हैं। आपने साहित्य, संस्कृति और कला, इन सबका समावेश करके एक ही संस्था बनाई।
इंदु जी ने साहित्य की लगभग हर विधा पर लिखा और उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित भी हो चुकी हैं परंतु उनका उपन्यास ‘काव्या’ काफी चर्चित रहा, जो डॉ. मंजरी पांडेय जी के जीवन-संघर्ष पर आधारित है।एक ऐसी महिला का जीवन, जिसने अनेकों दर्द झेलकर भी टूटना नही स्वीकार किया और अपने प्रयासों से और आत्मबल से राष्ट्रपति सम्मान हासिल किया और अनेकों महिलाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत बनीं।
आपका यह उपन्यास काफी बोल्ड विषय को लेकर लिखा गया है और इंदु जी के लेखन की खासियत यही है कि उन्होंने दर्द को उकेरा है। इस उपन्यास का 8 भाषाओं में अनुवाद भी किया जा रहा है।
डॉ. इंदु जी ने कोरोना काल के मुश्किल दौर में लगभग 200 दिनों तक अनवरत आधे घंटे का लाइव प्रसारण किया।
संप्रति आप डॉ. मृदुल कीर्ति जी के श्रीमद्भगवद्गीता के काव्यानुवाद की व्याख्या कर रही हैं।
आपसे मैंने ‘चुभन’ पॉडकास्ट पर बातचीत की, पूरा कार्यक्रम उसपर सुनें।
वाह
मनमोहक
वाह
अति सुन्दर