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जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि

जन्मभूमि के लिए प्रभु श्री राम का पांच सौ वर्षों का बनवास आज खत्म हो रहा है।पांच सदियों का यह संकट पांच अगस्त को दूर हो जाएगा।जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आज श्री राम मंदिर के भूमि पूजन के लिए देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी आ रहे हैं।हालांकि कोरोना कोविड-19 की त्रासदी के कारण बहुत थोड़े से ही लोग इस अवसर पर उस पावन स्थल पर उपस्थित रहेंगे बाकी देश की जनता अपने टेलीविजन पर ही इस पावन दृश्य को देख सकेगी।
भूमि पूजन में सौ से अधिक नदियों का जल लाया जा रहा है और दो हज़ार से अधिक पवित्र स्थानों से मिट्टी और जल लाया गया है।
यह सौभाग्य की बात है कि आज का भारत राम मंदिर बनते देख रहा है।1528 ई. में मुगल बादशाह बाबर के शासनकाल में बाबरी मस्जिद बनाई गई।मुगल सल्तनत लगभग तीन सौ वर्षों तक रही।उसके बाद अंग्रेजों का शासन रहा,जिसमें किसी मंदिर के निर्माण की बात सोची भी नहीं गयी होगी लेकिन हद तो यह हो गयी कि आजादी के 73 वर्ष बाद हमें यह दिन देखने को मिला।इस बीच एक अनुमान के अनुसार भारत की करीब 25 पीढ़ियां आईं और चली गईं।इन पीढ़ियों ने कितना दर्द झेला होगा ,प्रभु राम के मंदिर का यह हाल देखकर, इसका अनुमान हम सब लगा सकते हैं क्योंकि हमारे ही नाना-नानी,दादा-दादी इस आस में ही इस दुनिया से चले गए कि प्रभु राम को वे फटे हुए टेंट में से निकलकर अपने भव्य मंदिर में विराजते हुए देखेंगे।
आजकल एक तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग बहुत अधिक इस मुद्दे को उठाने पर लगा है कि इस कोरोना रूपी वैश्विक महामारी के समय में इस आयोजन की क्या आवश्यकता थी? ऐसे लोगों का यह भी तर्क होता है कि जो पैसा इधर बर्बाद किया जा रहा है उसे लोगों के इलाज पर लगाया जाए।इस पर मुझे तो जहां तक समझ आ रहा है वह यह है कि कोई बहुत बड़ा या आलीशान आयोजन तो हो नहीं रहा कि पैसे की बर्बादी की बात सोची जाए।हां कुछ संगठन जो वर्षो से राम जन्मभूमि के लिए लगे हुए थे उन्होंने अपनी खुशी से जो भी किया वही दिख रहा है कोई सरकारी स्तर पर तो मैंने बहुत बड़े पैमाने पर धन खर्च करने की बात नही सुनी और जो लोग यह तर्क देते हैं कि उधर खर्च होने वाले पैसे मरीजों पर लगाये जाते तो ऐसा कहने वाले लोग स्वयं कितना गरीबों या ज़रूरत मंदों की मदद कर पाते हैं?लाखों में खेलने वाले लोग कुछ सौ की भी मदद नहीं कर पाते पर हाँ अपने लिए तो लाखों का इंतजाम तुरंत हो जाता है।अभी परसों ही रक्षाबंधन के दिन लखनऊ शहर की मिठाई की दुकानों पर लोगों की लाइनें लगीं हुईं थीं।हज़ारों की मिठाइयां और गिफ्ट खरीदे जा रहे थे।वैसे भी शादी विवाह या किसी भी आयोजन में लाखों रुपए खर्च करते एक पल नहीं लगता तो फिर पांच सदियों बाद अगर यह दिन आया है तो फिर इतना वाद-विवाद क्यों?यह वैश्विक महामारी का समय है।लोग दवा के साथ दुआएं भी कर रहे हैं।ऐसे में अगर हम सभी की आस्था प्रभु राम की जन्मभूमि में उनका फिर से एक बार स्वागत करके शिलापूजन करने की है तो आस्था को किसी प्रमाण या तर्क-कुतर्क की ज़रूरत नहीं है।
कुछ लोगों को यह भी दिक्कत है कि प्रधानमंत्री मोदी को आने की क्या आवश्यकता है?ऐसे लोगों को मैं बताना चाहूंगी क्योंकि शायद उन्हें पता न हो कि आजादी के बाद यह दूसरा अवसर है जब किसी मंदिर का ऐसे पुनर्निर्माण हुआ हो।इससे पहले आज़ादी के तुरंत बाद सोमनाथ मंदिर को ठीक कराया गया था और उसका उद्घाटन हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जी ने किया था।क्या राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री की कोई धार्मिक आस्था नहीं है?वैसे भी हमारा देश इतना सहिष्णु और दयालु है और हमें ऐसे संस्कार प्राप्त हैं कि हम हर धर्म का आदर और सम्मान करते हैं।इस बात को राम मंदिर ट्रस्ट ने साबित भी कर दिया क्योंकि अयोध्या मामले के पक्षकार इक़बाल अंसारी को पहला न्यौता दिया गया।यह बात इसी सोच को दिखाती है कि राम देश का आधार हैं।यह कोई सिर्फ कही सुनी ही बात नहीं है वरन इसमें शत-प्रतिशत सच्चाई है कि राम हमारे रोम-रोम में बसे हुए हैं।कोई भी आश्चर्य या विस्मय करने वाली बात आती है तो हमें स्वयं ही अंदाज़ नहीं कि दिन में कितनी बार हम ‘हे राम’ का उच्चारण कर जाते हैं।ऐसे प्रभु को फटे टेंट में गुजारा करते देखना हम सबके लिए ही दुश्वार था।
अभी इसी वर्ष मार्च में मुझे अयोध्या जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।टेंट के नीचे छोटी-छोटी सी मूर्तियों को देखकर मन में यही भाव आया कि प्रभु आपने कोई लीला ही रची है।शायद यह दिखाना चाहा है कि हम ज़रा-ज़रा सी बात पर अधीर हो उठते हैं और अपनी किस्मत का रोना रोते हैं लेकिन धैर्य मनुष्य की सबसे बड़ी पूंजी है और श्री राम ने धैर्य धारण करके यह दिखा दिया कि धैर्य का फल अत्यंत ही मीठा होता है।मैं जब अयोध्या गयी तो मुझे श्री रामजन्मभूमि न्यास कार्यशाला जाने का भी अवसर मिला और मैंने देखा कि वहां इतने सधे तरीके से काम चल रहा था कि पूछिये मत।बड़े-बड़े पत्थर कट रहे थे ,बड़े-बड़े पत्थर काटने वाली मशीनें लगी हुईं थीं, यह सब देखकर उस दिन मन में यही आया कि काश वह दिन आये जब यह सारी चीजें मंदिर निर्माण के काम आएं।


उन लोगों को मैं एक और बात कहना चाहूंगी जो यह कहते हैं कि इस समय इन सब आयोजनों की क्या आवश्यकता थी?


अब आधुनिक इतिहास दो हिस्सों में हो जाएगा।पहला मंदिर निर्माण के पहले का और दूसरा मंदिर निर्माण के बाद का।आस्था और अधिकार की बात को अलग भी कर दिया जाए तो मंदिर निर्माण से पर्यटन बहुत अधिक बढ़ेगा।हम इस बात को ऐसे सोच सकते हैं कि भूतकाल यानी मंदिर बनने से पहले अयोध्या की क्या दशा थी?जो लोग अभी तक कभी भी अयोध्या नहीं गए हैं वे अंदाज़ भी नहीं लगा सकते कि इतने बड़े तीर्थस्थल का कितना बुरा हाल है।आप शायद विश्वास न करें कि अभी जब हम वहां गए तो हमें भोजन आदि करने के लिए कोई ढंग का अयोध्या नगरी में मंदिर के आस पास होटल तक नहीं मिला।वैसे भी शहर ही जैसे मायूस दिख रहा था तो ऐसे ही मेरे दिल से आवाज़ आई कि अयोध्या वासियों ने राजा राम को दुख तो बहुत ही दिए।न प्रजा माता सीता पर इस तरह शक करती,न माता सीता बनवास जातीं और न राम को इतना दुख सहन करना पड़ता।लेकिन यह सब हुआ और राजा राम प्रसन्न तो नहीं ही रहे।इसलिए अयोध्या में दुख की वह छाप ज़रूर दिखती है और मुझे मेरे कई परिचित लोगों ने ऐसा कहा भी है कि उन्हें भी अयोध्या जाकर दुःख की छाया का आभास होता है।वाराणसी, मथुरा, हरिद्वार किसी भी जगह जाइये ,वह जो एक चहल-पहल ,रौनक ऐसी नगरियों में होती है उसका इस नगरी में अभाव दिखा।

सरयू के घाट पर हम गए और हमने बोटिंग भी की लेकिन नाव चलाने वाले मल्लाहों का भी वही दुख कि रोज़ी-रोटी की समस्या है।आते भी बहुत कम लोग हैं और जो आते हैं वे बोटिंग आदि भी नहीं करते और हमारी कोई कमाई भी नहीं है।तो यह तो मंदिर निर्माण के पहले का अयोध्या हो गया।वर्तमान में मंदिर निर्माण होगा और शहर को विकसित किया जाएगा।एयरपोर्ट बनेगा जिससे विदेशी पर्यटकों को आने की सुविधा भी रहेगी।होटल आदि खुलेंगे।रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे।इस प्रकार वर्तमान में यह सब होगा तो भविष्य का आप अंदाज़ लगा सकते हैं कि क्या होगा?आर्थिक संपन्नता आएगी,सांस्कृतिक उत्थान होगा और लोगों का जीवन स्तर सुधरेगा।इस तरह हमारा देश ही तो शक्तिशाली बनेगा और पर्यटन से संस्कृतियों के आदान-प्रदान भी होंगे।


हमलोग 1990 का वो दौर भूले नहीं है जब राम मंदिर जन आंदोलन बन गया था।उस आंदोलन में न जाने कितने लोगों ने प्रभु श्री राम के नाम पर अपनी जानें तक बलिदान कर दीं।ऐसे लोगों के त्याग को ही कम से कम हमलोग श्रद्धांजलि दें और खुशी खुशी इस अवसर को स्वीकार करें।प्रभु राम के प्रति कितनी आस्था है इसका प्रमाण सिर्फ हमारे देश मे ही नहीं मिलता वरन विदेशों में भी उतने ही भक्त हैं।श्री लंका से भी जल लाया गया है।इंडोनेशिया, कंबोडिया और म्यांमार में श्री राम के नाम पर स्थान हैं।मलेशिया में राम कथा का बहुत चलन है और मुसलमान राम का नाम स्वयं से जोड़ते हैं।थाईलैंड के लोग स्वयं को राम का वंशज कहते हैं।जापान में भी राम पर आस्था रखी जाती है।कह सकते हैं कि श्री राम आस्था और संस्कृति के प्रवर्तक हैं।
प्रभु श्री राम हमारे लिए क्या हैं?यह बात इतने सारे उदाहरणों से स्पष्ट हो गयी होगी।अभी भी जिन लोगों के मन में कुछ दुविधा है उन्हें खुले विचारों के साथ इस दिन का स्वागत करना चाहिए।राम ईश्वर का रूप तो हैं ही लेकिन व्यक्ति या ईश्वर से ऊपर राम एक चरित्र हैं और ऐसे चरित्र का गान तो सभी को करना चाहिए।आगे आने वाली पीढ़ियों को राम के चरित्र से अच्छी तरह परिचित कराना माता-पिता का दायित्व होना चाहिए।आजकल आधुनिकता की अंधी दौड़ में मैंने बहुत से लोगों को यह कहते भी सुना है कि हमारे बच्चे को तो इन दकियानूसी बातों से मतलब नहीं।राम कृष्ण या हमारे देश की संस्कृति सभ्यता आदि जैसी चीजों से तो जैसे माता-पिता भी अपने बच्चों को दूर करते जा रहे या कह लीजिए कि उनमें ऐसी बातों की रुचि ही नहीं जगाई जा रही।सिर्फ मेडिकल, इंजीनियरिंग या बड़ी बड़ी पढ़ाई करने से कुछ नहीं होगा जब तक आज की पीढ़ी संस्कारवान नहीं होगी।पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और नैतिक मूल्य क्या है इसे समझने के लिए राम के चरित्र को समझना होगा।

( मैंने जो भी चित्र इस लेख में प्रकाशित किये हैं, सभी स्वयं द्वारा क्लिक किए हुए हैं )

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