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मां

“मां तेरी उपमा अनुपम है,
अनुपमेय गरिमा है,
तू है यशस्वी शाश्वत तेरी,
अकथनीय महिमा है।”

मां एक छोटा सा नाम, किन्तु जिसका विस्तार नभ से भी बड़ा है।मां का ममत्व किसी अविरल बहते मीठे जल की नदी से भी ज़्यादा शीतल है ।माँ, जिसके आँचल की शीतलता का मुकाबला, पछुवा की ठंडी पवन भी नहीं कर सकती, मां जिसका मन गंगा से भी पावन है, माँ जिसके ह्रदय में न जाने ममता का कितना विशाल समुद्र समाया है, माँ जो सृष्टि की सृजनकर्ता है, जिसकी कोख से स्वयं भगवान अवतरित हैं।मांअपने छोटे से घर की भगवान होती है, उसके चरणों मे मेरा शत-शत नमन।
मेरा हर शब्द सुमन आज माँ, सुशीला घई को समर्पित है, जो हम सब को छोड़ कर अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण के चरणों मे चिर निद्रा में सो गईं….. बस यही कहूँगी –

“तुम्हारे बाद तो महफ़िल में अंधेरा होगा,
बहुत चिराग जलायेगे रोशनी के लिए।”

3 thoughts on “मां

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