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रंगमंच:एक विमर्श

https://chubhan.today/wp-content/uploads/2021/07/PRABHAT-BOSE.mp3 "लाई हयात, आए, क़ज़ा ले चली, चले अपनी खुशी न आए न अपनी ख़ुशी चले बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे पर क्या करें जो काम न बे-दिल्लगी चले कम होंगे इस बिसात पे हम जैसे बद-किमार जो चाल हम चले सो निहायत बुरी चले हो उम्रे-ख़िज़्र भी तो भी कहेंगे ब-वक़्ते-मर्ग हम क्या रहे यहां अभी आए…

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स्त्री की धरती, स्त्री का आसमान

"चुभन पॉडकास्ट" https://www.chubhantoday.com/wp-content/uploads/2021/06/Anuj-jayaswal.mp3 अनुज जायसवाल "वह ऊष्मा है ऊर्जा है प्रकृति है पृथ्वी है क्योंकि - वही तो आधी दुनिया और पूरी स्त्री है।" -डॉ. शरद सिंह महिला सशक्तिकरण और इससे जुड़े तमाम विषयों पर 'चुभन' से प्रायः कई पोस्ट प्रकाशित होती रहती हैं और कई विद्वान-विदुषी व्यक्तित्व इस विषय पर आकर अपने-अपने विचार हमारे पाठकों और पॉडकास्ट पर श्रोताओं के लिए प्रस्तुत करते रहते हैं।आपको स्मरण ही होगा…

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आवारा की बातें

दोस्तों, हम सभी कभी न कभी ऐसा महसूस करते ही हैं कि हम अपने उद्गार कहीं व्यक्त नहीं कर पा रहे या कोई ऐसा प्लेटफॉर्म हमें नहीं मिलता, जहां हम स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करें। हमारे 'चुभन' के प्लेटफॉर्म से काफी समय से जुड़े हुए बंगलुरू के वरिष्ठ साहित्यकार अजय 'आवारा' जी…

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तू जी, ऐ दिल ज़माने के लिए

https://chubhan.today/wp-content/uploads/2021/06/ram-ugrah-shukla.mp3 "अमृत कलश तो देवता लेकर चले गए विष ज़िंदगी का जो बचा सारा मिला हमें। ये आग, ये धुंआ, ये धुंधलका है सामने इस हाल में तो हर कोई हारा मिला मुझे।" - हनुमंत नायडू बात बिल्कुल सही है, जीवन दुखालय है और इसमें वही इंसान आंतरिक सुख और संतुष्टि का अनुभव कर सकता है, जिसके अंदर आत्मसंतुष्टि और परमार्थ का भाव होगा, क्योंकि…

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तेलुगु साहित्य-विमर्श

Telugu Sahitya Vimarsh https://chubhan.today/wp-content/uploads/2021/06/तेलुगु-साहित्य.mp3 तेलुगु भाषा का अस्तित्व कब से आरंभ हुआ, इस दिशा में जो अनुसंधान हुए हैं, वे पर्याप्त नहीं हैं।जब तक निश्चित रूप से कोई प्रामाणिक सिद्धांत प्रतिपादित नहीं किया जाता, तब तक अनुमान के आधार पर किसी भाषा की उत्पत्ति का निरूपण करना न्यायसंगत न होगा।अग्निपुराण के वर्णन के आधार पर भी…

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प्रतिभा और सामर्थ्य के विविध आयाम

साहित्य से दूरी हमें कहाँ ले जा रही ? 👆लिंक क्लिक कर इस रोचक लेख को भी अवश्य पढ़ें। बीता कुछ समय हम सबके लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रहा और आज भी मन यही चाहता है कि यह बुरा सपना हमारी आंख खुलने के साथ झूठ साबित हो और हम फिर अपनी पुरानी ज़िंदगी…

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क्या कोरोना (Corona) मानवीय संवेदना जगाएगा

"शब्द गूंगे हो गए हैं अर्थ बहरे हो गए हैं, वक़्त की हाराकिरी में घाव गहरे हो गए हैं।" - रामाश्रय सविता सच में आज वक़्त की हाराकिरी (आत्महत्या करने को जापानी में हाराकिरी कहते हैं ) , में ऐसे गहरे घाव मिले हैं, जिनसे शब्द और अर्थ ही गूंगे और बहरे हो गए हैं।इतने दिनों से न तो कुछ…

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श्री राम का संघर्ष

हर तरफ कैसा कोहराम, कैसा मातम छाया हुआ है?हर चीज़ अपनी जगह पर स्थिर हो गयी है।कुदरत भी मानो रो रही है।पूरा विश्व ही मौत के आगोश में बैठा है।कब किसकी बारी आ जाए, इसकी शंका हर मन में रहती है।कितने अपनों को हम अपने सामने से जाता देख रहे हैं और कोई अपना अब…

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मलयालम भाषा एवं साहित्य:उद्गम और विकास

https://chubhan.today/wp-content/uploads/2021/04/वत्सला-जी.mp3                    हमारे देश के विभिन्न भागों में अनेक भाषाएं बोली जाती हैं।भाषाओं की विविधता देश की एकता में कहीं भी बाधक नहीं समझी जानी चाहिए। "दस बिगहा पर पानी बदले, दस कोसन पर बानी" इस कहावत के अनुसार 'पानी' और 'बानी' की अनेकरूपता तो स्वाभाविक ही है और…

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पद्मश्री डॉ. बृजेश कुमार शुक्ला जी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि

आज मन इतना व्यथित है कि शब्द मानो गूंगे हो गए हैं।क्या लिखूं समझ नहीं पा रही ?सुबह होते ही इतनी दुखद खबर सुनने को मिलेगी, कभी सपने में भी नही सोचा था। पद्मश्री से सम्मानित लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ बृजेश कुमार शुक्ला जी का कोरोना से स्वर्गवास हो गया।यह खबर झकझोर देने वाली…

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