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सावन मास का महत्व

हमारे हर पर्व-त्यौहार का अपना अलग ही महत्व है।साल के बारह महीने के हिसाब से भी इनका अलग-अलग महात्म्य होता है।श्रावण या सावन मास का अपना एक अलग ही स्थान है।साहित्यकारों ने भी जितना इस माह के ऊपर अपनी रचनाएँ लिखीं उतनी किसी अन्य पर नहीं।इसी तरह हमारे बॉलीवुड में भी सावन और बरसात के गीतों की कोई कमी नहीं है।नायक और नायिका के मिलन और विरह के लिए जितना अधिक सावन के महीने का उपयोग हुआ उतना किसी अन्य मास का नहीं।

पूर्णिमा के बाद चंद्रमा जब श्रवण नक्षत्र में प्रवेश करता है तो श्रावण (सावन) माह की शुरुआत होती है।जल प्रधान इस महीने में भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है।मानव शरीर भी जल प्रधान है।कितना सुन्दर सन्देश है यह आम जन के लिए।क्योंकि सावन के महीने में बरसात अवश्य होती है और हम आजकल देख रहे हैं कि कहीं-कहीं तो जल-प्रलय की स्थिति बन गई है।ऐसे में शिव की आराधना और उनका जलाभिषेक हमें जल के हमारे जीवन में महत्व का ही बोध कराता है।

हम हर त्यौहार एक परम्परा के अनुसार मनाते चले आते हैं परन्तु थोड़ा भी हम जानने की कोशिश करें तो हर त्यौहार कोई न कोई सन्देश तो अवश्य दे जाता है और शिव का व्यक्तित्व तो स्वयं में ही विरोधाभासी है।ऐसे में उनके व्यक्तित्व से ही हमें अनेकों सन्देश मिल जाते हैं।सबसे बड़ा सन्देश जो हमें शिव से मिलता है वह है-‘दूसरों की पीड़ा पीने वाले शिव’। कहा जाता है कि गोपियों के साथ कृष्ण का रास देखने एक बार कैलाश से शिव भी आए।वह गोपी का वेश धारण कर शामिल हुए।जिस रास में कृष्ण के साथ शिव शामिल हुए,वह महारास हो गया।कहते हैं कि तभी से शिव का एक नाम ‘गोपेश्वर’ पड़ा।शिव का जैसा स्वरुप व स्वभाव बताया जाता है,उसके साथ रास का कोई ताल-मेल नहीं बैठता,लेकिन यह विरोधाभास ही शिव तांडव की ओर संकेत करता है।सारे विरोधाभासों को जो अपने में समेट ले और उसका किसी से विरोध न हो,वही शिव है।कल्पना कीजिये कि एक शिव वह है जो तांडव करते हैं तो प्रलय आ जाती है और एक शिव वह हैं जो रास के नृत्य में शामिल होने के लिए स्त्री (गोपी) का रूप धारण कर रहे हैं।उनकी यह सरलता ही उन्हें महादेव के रूप में पूजनीय बनाती है।शिव का रूप हमें बहुत कुछ बताता है।गले में साँपों की माला बताती है कि दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों को भी गले लगाकर सहज बनाया जा सकता है।उनका तीसरा नेत्र विवेक का प्रतीक है।विवेक हो तो कोई भी बाधा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती।शरीर पर भस्म और कमर पर मृगछाल नश्वरता का बोध कराती है।शिव का सम्पूर्ण रूप बता रहा है कि पास में महाशक्ति होने पर भी व्यक्ति को कितना सरल व सहज होना चाहिए।

यही चीज़ आज हमारे पास नहीं है या कह लें कि बहुत कम है जिसके कारण हम थोड़ा भी कुछ प्राप्त करते हैं चाहे वह धन हो,शारीरिक क्षमता हो,पद हो या और कुछ,तो हमारे अन्दर अपनी उस शक्ति का इतना घमंड आ जाता है कि हम सामने वाले को नगण्य समझने की भूल कर बैठते हैं।यही बात हमारे नाश का कारण बनती है।धन और पद का अहंकार तो आज बहुत ही हो गया है जिसके कारण लोग अपने रिश्तों और यहाँ तक कि अपने माता-पिता को भी भूल गये हैं या उनके आगे भी अपने धन-पद का अहंकार जताने से नहीं चूक रहे।यही बात व्यापक पैमाने पर देखें तो देशों के बीच भी हो रही है।आज हमें शिव के व्यक्तित्व से प्रेरणा लेने की अत्यधिक आवश्यकता है।

कृष्ण की तरह शिव भी नील वर्ण हैं।नीला रंग आकाश का भी है।आकाश अर्थात व्यापकता-जो किसी भी संकीर्णता में न रहे,वही शिव है।समुद्र-मंथन से क्या-क्या रत्न निकले लेकिन शिव ने विष का ही पान किया और नीलकंठ कहलाये।दूसरों की पीड़ा को जो पी जाए,वही तो शिव है।

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