कल रात में जैसे ही बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन के कोरोना कोविड-19 से संक्रमित होने की खबर सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर आनी शुरू हुईं तो एक बार तो शायद किसी को भी विश्वास ही न हुआ हो लेकिन जब यह एहसास हुआ कि खबर सही है तो फिर मन में तमाम तरह की शंकाओं ने जन्म लिया कि जब अमिताभ जी जैसे व्यक्ति को जो इस पूरे कोरोना काल में घर से भी नहीं निकले, न ही किसी से मिले जुले और सारे नियमों का पालन भी करते रहे तो फिर उनको यह रोग हो गया तो किसी भी व्यक्ति को यह हो सकता है परंतु कहा यह भी जा रहा है कि बेशक अमिताभ जी इस दौरान घर रहे लेकिन उनके पुत्र अभिषेक बच्चन लॉक डाउन हटने के बाद से काम के सिलसिले में अक्सर घर से निकलते थे।यह भी कहा जा रहा है कि अभिषेक की वेब सीरीज ‘ब्रीद:इंटू द शैडो’ अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई है।इसकी डबिंग के लिए अभिषेक बच्चन कई बार घर से निकले हैं और कई लोगों के संपर्क में भी अवश्य आये होंगे ऐसे में कोई कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में भी उनका आ जाना बहुत संभव है और पुत्र से पिता में यह वायरस चला गया हो तो कोई बड़ी बात नहीं।
मैं सभी से इस बात का निवेदन करती हूं कि घर में सभी का ध्यान रखें परन्तु बुजुर्ग और गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों का बहुत ही ध्यान रखा जाना चाहिए क्योंकि जैसा कि बार बार यह बात कही जा रही है कि युवा और स्वस्थ व्यक्ति तो अपनी रोग प्रतिरोधक शक्ति के द्वारा इस वायरस पर विजय प्राप्त कर भी ले रहे हैं लेकिन बुजुर्गों और गंभीर बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों की हालत को संभाल पाना मुश्किल हो रहा है।मेरा तो यह मानना है कि जब वो दिन नहीं रहे तो ये दिन भी नहीं रहेंगे।ऐसे में कुछ महीने और सब्र कर लिया जाए तो खुशियां अवश्य दोबारा मिलेंगी।अभी चार-पांच महीने पहले तक हम अपने सभी लोगों से जब मन करता था मिलते थे,जहां दिल चाहता था चले जाते थे,जब मन किया घूमने-फिरने निकल जाते थे,होटल,रेस्टोरेंट, पार्टियां,शॉपिंग सब बिल्कुल हमारे जीवन का सामान्य हिस्सा थे।कोई रोक टोक नहीं,कोई बंधन नही।तो जब इतना उन्मुक्त, स्वतंत्र और खुशहाल जीवन हम सभी अभी तक जिये हैं तो कुछ दिन बंधन और नियमों के साथ भी जिया जा सकता है।फिर यह समस्या कोई सिर्फ हमारी आपकी नहीं है वरन पूरा विश्व इससे त्रस्त है।मेरे पिता जिन्होंने अपने बाल्यकाल में भारत-पाक विभाजन का दर्द झेला है, वे आजकल एक बात बहुत अच्छी कहते हैं कि जब दोनों देश बंटे तो क्या कुछ हुआ अब वह सब तो किसी को बताने की आवश्यकता नहीं क्योंकि सभी परिचित हैं लेकिन बंटवारे में न जाने कितनों के अपने सदा सदा के लिए खो गए,बेघर लोग छोटे छोटे बच्चों और बुजुर्ग माता-पिता या बीमार लोगों को लेकर इधर उधर भटकते फिरे और इन मुश्किल हालातों में न जाने कितने लोगों के दिमाग खराब हो गए या अपनों को खोकर लोग जान देने पर भी विवश हो गए लेकिन मेरे पिता की बात मुझे एकदम सही लगी कि फिर भी लाखों लोगों के साथ उस समय ऐसा हुआ इसलिए एक दूसरे को देखकर सब जीने की हिम्मत जुटाते रहे और सब कुछ खोकर भी अपनी हिम्मत और जिजीविषा से वह सब कुछ प्राप्त किया जो बहुत सारे लोगों के लिए दिन में तारे देखने के समान होता है।इसी तरह आज यह जो वैश्विक महामारी है इसने सारे विश्व को अपने शिकंजे में कसा हुआ है तो ऐसे में एक दूसरे को देखकर धैर्य धारण करिए।सिर्फ अपने अकेलेपन या बोरियत को मिटाने के चक्कर मे अपने अपनों को भी इस बीमारी से संक्रमित न करिए।काम के सिलसिले में भी अति आवश्यक हो तो जाएं और फिर लौट कर बुजुर्गों और बच्चों के संपर्क में आने से बचें।
कवि,लेखक और हिंदी सिनेमा को अनगिनत गाने दे चुके गीतकार प्रसून जोशी ने अमिताभ जी के लिए ट्वीट किया कि “एक युग अस्वस्थ है।An era is unwell.”
सच में अमिताभ बच्चन का व्यक्तित्व अपने आप मे एक युग को समेटे हुए है।युग की विभूतियां युग-प्रसूत होती हैं।इस प्रकार के लोग जिन्हें निश्चित रूप से युग पुरूष कहा जा सकता है, उनके थोड़ा सा भी कष्ट में होने पर उन्हें चाहने वाले व्यथित हो जाते हैं और ऐसा होना भी चाहिए।हम सब की प्रार्थनाएं उनको लगें और वे जल्द ही स्वस्थ होकर अपने घर आ जाएं।
आज सारा दिन मीडिया पर उन्हीं की खबर आती रही।फिर जब उनकी पोती जिसकी आयु 8 वर्ष है उसके भी कोरोना वायरस से संक्रमित होने की खबर आई तो सब यही कह उठे कि इतनी छोटी बच्ची कैसे झेलेगी?अमिताभ जी को जब अस्पताल में आराध्या के भी संक्रमित होने का समाचार मिलेगा तो वे कैसे झेल पाएंगे??इन सब बातों से आज मेरे मन में कुछ प्रश्न उठे।ठीक है इतने बड़े कलाकार या राजनीतिज्ञ, या बिज़नेसमैन या किसी भी क्षेत्र के दिग्गज लोग जो आज इन स्थानों पर पहुंचे हैं, वे हक़दार हैं कि उन्हें सब सुख सुविधाएं मिलें।लेकिन क्या हमारे देश के एक आम नागरिक को इन सुविधाओं का दस प्रतिशत भी मिल पाता है?मेरी एक सहेली के पिता कुछ वर्षों पहले बीमार होने पर कई दिनों तक मुंबई के अस्पताल में भर्ती रहे।लाखों रुपए उन लोगों के लग गए।उसने ही मुझे बताया कि वह पंचसितारा अस्पताल जिसके खर्चे मेरी सहेली के घर वाले बेचारे किसी तरह सहते थे कि उनके पिता ठीक हो जाएं।उसी अस्पताल में जब अमिताभ बच्चन बीमार होकर आते थे तो पूरा एक फ्लोर खाली करा दिया जाता था और सभी अच्छे डॉक्टर और स्टाफ उनकी सेवा में लग जाते थे।ठीक है वे समर्थवान और पैसा खर्च कर हर सुविधा प्राप्त करने में सक्षम थे लेकिन जो आम आदमी अपनी मेहनत की पाई-पाई जोड़कर किसी अपने के लिए खर्च करता है, उसके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार क्यों?
अमिताभ बच्चन की पोती ही नहीं इस देश मे कोरोना वायरस से संक्रमित हुई बल्कि न जाने कितने बच्चे इस बीमारी की भेंट चढ़े या कष्ट सहकर घर वापस आये।क्या इन बच्चों के दादा-दादी का दर्द कहीं से भी इन ‘खास लोगों’ के दर्द से कम है?कभी नहीं लेकिन क्या आम लोगों को वह इलाज,वह सुविधा मिल पाती है जिसके वे हकदार हैं? इसमें मुझे प्रशासन से भी अधिक दोषी वो लोग लगते हैं जिन्होंने अपने कर्तव्यों का पालन ठीक से न करने का ही संकल्प लिया हुआ है।सिर्फ़ कोरोना काल में ही नहीं पहले भी हमारे देश में चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधा का लाभ आमजन तक नहीं पहुंच पाता।मेरी एक जानने वाली जो स्वयं डिग्री कॉलेज में प्रोफेसर के पद पर हैं,उन्हें अस्थमा की बीमारी काफी पुरानी है जिससे वे बड़ा परेशान रहती थीं।एक बार मैंने उनसे कहा कि आप इतना परेशान न रहें देखिए अमिताभ बच्चन, सोनिया गांधी सबको अस्थमा है और वे अपना सामान्य जीवन बिता रहे हैं।इस पर वे बड़ी पीड़ा से बोलीं, “देखो उन लोगों से तुम अपनी मेरी तुलना न करो।उनके बीमार होने पर डॉक्टरों की लाइन लग जाती है और हमारे बीमार होने पर हमें कष्ट सहकर भी डॉक्टर के लिए लाइन लगानी पड़ती है।”
इस लाइन लगाने और कष्ट सहने में हमारी बीमारी तो और भी बढ़ जाती है।वास्तव में हमारे देश के सरकारी अस्पतालों का जो हाल है वहां की लंबी लाइन और डॉक्टरों का रूखापन देखकर जो भी थोड़ा-बहुत पैसे से सम्पन्न लोग हैं वे प्राइवेट अस्पताल का ही रुख करते हैं।प्राइवेट अस्पतालों में मुझे ज़्यादा लिखने की आवश्यकता नहीं क्योंकि आप सभी इन परिस्थितियों से कभी न कभी दो-चार हुए ही होंगे कि आपकी जेब के अनुसार ही आपका इलाज होता है।छोटी सी बीमारी भी लाखों रुपए आपकी जेब से निकाल लेती है।ज़बरदस्ती के टेस्ट कराए जाते हैं।इन सारी चीजों में एक ही उद्देश्य होता है कि कितना पैसा कमा लिया जाए।
बहुत ज़्यादा मैं लंबा चौड़ा लिखना भी नहीं चाह रही लेकिन इस समय कोरोना महामारी के दौरान सरकारी स्तर पर भी यह कहा जा रहा है कि घर से कम निकलें और इलाज के लिए भी डॉक्टरों से ऑनलाइन या फोन के द्वारा संपर्क करें वे आपको सब बताएंगे लेकिन मैंने स्वयं देखा कि सरकारी अस्पताल में तो संपर्क होना ही मुश्किल है और हो भी गया तो डॉक्टर ही नहीं ढंग से बात करते।हमारे जानने वालों में एक बुजुर्ग व्यक्ति ,जिनको कुछ तकलीफें थीं ,उन्होंने सरकारी अस्पताल से संपर्क किया और डॉक्टर से बात करनी चाही तो डॉक्टर ने बड़े रूखेपन से उनकी व्यथा सुनकर यह कह दिया,” अभी आपकी दवाएं जैसी चल रही हैं वैसे चलाते जाइये।इस समय अस्पताल आने की ज़रूरत नहीं वरना कोरोना लग गया तो और मुसीबत में पड़ जाएंगे।” बेचारे बुजुर्ग व्यक्ति अपना कष्ट मन में रखकर ही रह गए।
फिर उन्होंने अपने प्राइवेट डॉक्टर जिनको पहले कई बार वे एक हज़ार रुपये फीस देकर दिखा चुके हैं तो उन्हें फोन करने पर उनके स्टाफ द्वारा कहा गया कि “सर आपको app भेज दिया जाएगा।उसे मोबाइल पर इंस्टाल कर लीजिएगा।उसमें आप अपना ऑनलाइन रेजिस्ट्रेशन करें और फीस आदि की औपचारिकता पूरी करके वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से डॉक्टर साहब से संपर्क करें।”
बुजुर्ग व्यक्ति जो ऑनलाइन रेजिस्ट्रेशन करने में भी नहीं समर्थ थे और उनके पास उनका कोई बेटा बेटी भी नहीं था फिर इस कोरोना काल में वे किसी से घर से बाहर निकल कर भी यह काम नहीं करा सकते थे।ऐसे में वे बिना किसी डॉक्टर के परामर्श के तकलीफ सहते हुए अपना समय काट रहे है।उन्होंने कहा कि उन्हें यह सब ऑनलाइन काम नहीं आते तो उधर से डॉक्टर साहब के स्टाफ द्वारा कह दिया गया कि इसके बिना तो डॉक्टर साहब मिल ही नहीं सकते।असल में रजिस्ट्रेशन की मोटी फीस बिना तो वास्तव में वे कैसे मिलेंगे?
सच्चाई तो यह है कि बहुत सारे लोग ऑनलाइन काम नहीं कर पाते या कितने बुजुर्ग लोग आजकल अकेले रहते हैं क्योंकि उनके बच्चे काम के सिलसिले में बाहर रह रहे होते हैं तो ऐसे में इस तरह की सुविधाओं का क्या लाभ?
कहने का मतलब कि जब इतनी असमानता आती है तभी समाज में विद्रोह की भी लहर उठती है।इस सारी परेशानी में सिर्फ प्रशासन का ही दोष न देखकर आज के डॉक्टरों को भी अपने आप को देखना होगा।उन्हें कितना सम्मान मिलता है कि भगवान का ही दर्जा मिल जाता है।मरीज अपनी बीमारी में यह ही सोचता है कि मैंने भगवान को तो नहीं देखा इसलिए डॉक्टर ही मेरा भगवान है तो ऐसे में डॉक्टरों को भी थोड़ा मानवीयता लानी होगी।सब डॉक्टर भी ऐसे नहीं हैं बहुत से डॉक्टरों ने अपनी जान पर खेलकर भी इस कोरोना काल मे मरीजों की जान बचाई लेकिन फिर भी ऐसे डॉक्टरों की भी कमी नहीं जो मरीज का गलत इलाज करके सिर्फ पैसा कमाने के चक्कर मे उसकी जान से खेलने में भी गुरेज नहीं करते।
अंत में मैं बस एक बात ही कहना चाहूंगी कि पहले जो हो गया वह बीत चुका अभी भी डॉक्टर अपने अंदर मानवीय गुण लाएं और मरीज का दुख हरने का प्रयास करें।इसके साथ ही इस समय जबकि इस वैश्विक महामारी का हम चरम देख रहे हैं तो मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि बस जल्द ही इस महामारी के कष्ट से हम सब मुक्त हों।कोई भी अपना अब किसी अपने से न बिछड़े।
हरिओम आपने १००% मेरे मन की भावनाओं को शब्दों में बांधा है। अमिताभ का सुनते ही मुझे भी आम जनता की विवशता का ध्यान आया।
तीनों विषय बहुत सराहनीय हैं ।
शुभकामनाएं
धन्यवाद