जग पीड़ित है अति दुख से
जग पीड़ित है अति सुख से
मानव-जीवन में बंट जाए
सुख-दुख से,दुख-सुख से।
-सुमित्रा नंदन पंत
पंत जी की यह पंक्तियां कितनी सारगर्भित हैं।सच में सुख दुख से और दुख सुख से बंट जाए तो मानव-जीवन मे कोई विपदा ही न रहे लेकिन इसके लिए कई हाथ मदद के आगे आने चाहिए जो दूसरों के दुख से अपना सुख बांट सकें लेकिन भलाई का मार्ग दुनिया में सबसे कठिन और दुर्गम है।इसलिए इस मार्ग पर बहुत कम लोग ही चल पाते हैं और इसे पार कर पाते हैं।वास्तविकता यह है कि किसी की मदद करने के लिए केवल धन की ज़रूरत नहीं होती ,उस के लिए एक अच्छे मन की ज़रूरत होती है और ऐसे अच्छे मन से जो कार्य करते हैं वे सम्माननीय हो जाते हैं।
आज मैं जिस शख्सियत से आपका परिचय कराने जा रही हूँ, उनपर यह सब बातें बिल्कुल सटीक बैठती हैं।इस कोरोना-कोविड 19 वैश्विक महामारी के दौर में जब आदमी एक दूसरे से मिलने में भी डरता है ऐसे में अपनी जान की परवाह न करते हुए ज़रूरतमंदों की सेवा को ही अपना धर्म मानकर चलने वाले योद्धा हाई कोर्ट में AGA(अपर शासकीय अधिवक्ता) राम उग्रह शुक्ला जी ने जब से लॉक डाउन घोषित किया गया 125 दिनों तक लगातार भूखे असहाय संकटग्रस्त लोगों, कोरोना रक्षक पुलिसकर्मियों सहित कोरोना समाज सेवियों, यहां तक कि रिक्शा वालों, सफाई कर्मियों ,प्रेस मीडिया से संबंधित लोगों सहित सभी लोगों के बीच में जाकर आवश्यक खाद्य सामग्री एवं मास्क सेनीटाइजर,दवा आदि का वितरण किया है और उनका अभी भी यह कहना है कि अगर भविष्य में किसी भी प्रकार की सेवाओं की जरूरत किसी भी लाचार मजबूर व्यक्ति को पड़ेगी तो वे निरंतर सेवा में हाजिर रहेंगे।उनका कहना है कि “यह मेरा संकल्प है ।मेरा कर्तव्य है कि समाज में कोई भी अगर परेशानी में है तो उसकी मदद की जाए मेरी कोई राजनैतिक इच्छा नहीं है ना ही मैंने कोई कार्य किसी प्रयोजन से किया है मेरा उद्देश्य केवल लोगों के बीच में सेवा भाव से उपस्थित रहना है और जरूरतमंदों की मदद होती रहे यही मेरा परम उद्देश्य है इसीलिए सड़कों पर हजारों किलोमीटर से चलकर आ रहे भूखे प्यासे मजदूरों और जगह जगह पर जिनके पास भोजन नहीं था और सरकारी सहायता से वंचित लोगों को खोज कर उनकी आवश्यक मदद करना मैंने अपना कर्तव्य समझा क्योंकि उन परिस्थितियों में लोगों के पास कोई रोजगार नहीं था और आर्थिक समस्या खड़ी हो जाने के कारण जरूरी खाद्य सामग्री खरीद पाने में असमर्थ हो चुके थे।”
राम उग्रह शुक्ला जी ने बताया कि “मैं बहुत ही साधारण व्यक्ति हूं और अपने सीमित संसाधनों से गरीब असहाय और असमर्थ लोगों की जो भी मदद कर पा रहा था उसको अपना सौभाग्य समझ कर मदद कर रहा था क्योंकि इस संकट काल में मुझको उनकी सहायता का मौका मिला, मैं गांव और जमीन से जुड़ा व्यक्ति हूं मुझको जो अंतरात्मा की आवाज पर सही दिखाई देता है वह करने का प्रयास करता हूं और जैसे लॉकडाउन लगा और मैंने देखा कि भारी संख्या में मजदूर घर से निकल कर पैदल अपने गांव की ओर जा रहे हैं तो उनकी मदद करना मुझे अपना फर्ज लगा और मैंने 26 मार्च से उनकी मदद करने के लिए अपने मन में प्रण लेकर एक शुरुआत कर दी और समाज में सभी लोगों को ऐसा करने के लिए प्रेरित भी करता रहा, क्योंकि मेरे पास बहुत बड़े संसाधन नहीं थे कि हर आदमी की मदद के लिए खड़ा हो सकूं।यह हीरो बनने का वक्त नहीं सेवा करने का वक्त था, डर के आगे जीतने का वक्त था,सरकार भी व्यक्तियों पर आधारित है, हर व्यक्ति तक सरकार नहीं पहुंच सकती है, इसलिए हर व्यक्ति को निकल कर ऐसे लोगों की मदद करनी थी जो परेशान थे और जिनकी समस्या कोई सुनने वाला नहीं था, इसीलिए ऐसे स्थानों का भी चयन करना था जहां आसानी से लोग मदद के लिए नहीं पहुंच सकते हैं या तो जिन ज़रूरतमंदों की ओर लोगों का ध्यान आसानी से नहीं जाता है।यह एक ऐसी समस्या थी जो अचानक पैदा हुई और देश को लॉकडाउन की ओर बढ़ना पड़ा और 125 दिनों के बाद अब जब ऐसी कोई आवश्यकता नहीं रह गई है तो मैंने निर्णय लिया कि अब आवश्यकता पड़ने पर ही पुनः लोगों की सहायता करने का कार्य शुरू करूंगा।मैंने अपने परिवार व स्वयं के लिए खराब समय के लिए कुछ सेविंग कर रखी थी, मुझे लगा कि अभी मेरे ऊपर संकट नहीं है लेकिन जो लोग संकट से गुजर रहे हैं और उनके पास इससे बचने का कोई उपाय नहीं है उनकी मदद के लिए अपनी सेविंग को खर्च कर दिया जाए, संक्रमण गंभीर है और बचाव ही इसका उपाय है। मैंने खुद को सुरक्षित रखते हुए लोगों की जो भी मदद बन पड़ी किया, लॉकडाउन सरकार ने बहुत सही समय पर करके लोगों को सचेत कर दिया था और अगर सब लोग उसका पालन करते तो संक्रमण को बढ़ने का मौका ही ना मिलता,लेकिन आज भी स्थिति गंभीर हो चुकी है, इस तरीके से संक्रमण फैल रहा है और इसकी कोई दवा अभी तक नहीं बन पाई है,कोरोना एक नई बीमारी है, और लोगों को इसकी आदत नहीं है लेकिन इसके जो भी उपाय हैं ,जो भी गाइडलाइन है उसका 100% पालन चाहे समझाकर चाहे कड़ाई से कराने की आवश्यकता है, मैंने देखा है लॉकडाउन खुलने के बाद ऐसा लगता है जैसे लोग स्वच्छंद हो चुके हैं, लोग गंभीरता से इसको नहीं ले रहे हैं,और सरकार ने भी लोगों को समझा कर आत्मनिर्भर छोड़ दिया है । हमने किसी का अब तक कोई सहयोग नहीं लिया है,ख़ुद ही तन,मन धन से सब कुछ किया है।”
राम उग्रह जी ने अपनी मां के बारे में बताया जो 102 साल की हैं और गोंडा उत्तर प्रदेश के एक अस्पताल के ICU में भर्ती रहीं। बताइये एक तरफ बूढ़ी बीमार मां और दूसरी तरफ़ उनका बेटा लखनऊ में यू॰पी॰,बिहार जा रहे मज़दूरों को भोजन वितरण कर रहा है और उसके बाद शाम को अपनी माँ को देखने गोंडा जाता है और माँ का हाल लेकर फिर दूसरे दिन समाज की सेवा करना। ऐसी माँ और बेटे दोनो को सलाम।
डायरेक्टर संजीव कौल ने कोरोना वारियर्स को लेकर एक फ़िल्म बनाने का फैसला किया है।’Inspiring India’ के नाम से फ़िल्म बनाई जाएगी जिसमें अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार,सोनू सूद,नीता अंबानी,बाबा रामदेव के साथ ही राम उग्रह शुक्ला जी को भी शामिल किया गया है।
फ़िल्म के डायरेक्टर संजीव कौल का कहना है कि लखनऊ के राम उग्रह शुक्ला जी ने इस बीमारी से बिना डरे अपने खर्चे से लोगों की मदद की।लोगों को ऐसे व्यक्तित्व से प्रेरणा मिले इसीलिए यह फ़िल्म बनाई जा रही है।राम उग्रह शुक्ला जी का कहना है कि “इतने बड़े लोगों के साथ मुझ पर जो फ़िल्म बनाई जा रही है, यह मेरे लिए गर्व की बात है।”
फ़िल्म डायरेक्टर संजीव कौल ने कहा कि फ़िल्म मेकर के रूप में वे कई लोगों को देख रहे थे और कई लोगों ने बहुत बढ़िया काम भी किया।इसलिए उन्होंने सोचा कि इन सारी सच्ची कहानियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिखाया जाए।संजीव कौल का कहना था कि जब वे ऐसे लोगों को देख रहे थे तो राम उग्रह शुक्ला जी ने जिस तरह 125 दिन तक निःस्वार्थ भाव से सेवा की ,यह उनको बहुत ही प्रेरणादायक लगा।
अंत में बस मैं यही लिखना चाहूंगी कि ऐसे प्रेरणादायी व्यक्तित्व को अधिक से अधिक सबके सामने लाना चाहिए, जिससे आगे आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा मिल सके।कितना सही किसी ने कहा है-
“मरहम लगा सको तो किसी गरीब के ज़ख्मों पर लगा देना,
हक़ीम बहुत हैं बाजार में अमीरों के इलाज ख़ातिर।”
Ati sunder.