निसंदेह भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन की गिनती आधुनिक समाज के सबसे बड़े आंदोलनों में की जाती है।विभिन्न विचारधाराओं और वर्गों के करोड़ो लोगों को इस आन्दोलन ने राजनीतिक रूप से सक्रिय होने के लिए प्रेरित किया और औपनिवेशिक साम्राज्य को घुटने टेकने के लिए विवश किया। 1857 के विद्रोह के सम्बन्ध में इतिहासकारों,विद्वानों और प्रशासकों के दो मत हैं।पहला मत विदेशी इतिहासकारों व प्रशासकों का है जिन्होंने इस विद्रोह को सैनिकों का विद्रोह मात्र कहकर पुकारा है और इसके महत्व को कम करने की कोशिश की है।जबकि दूसरी ओर भारतीय इतिहासकारों,विद्वानों व राजनीतिक नेताओं ने इसे विदेशियों के साथ आधुनिक काल का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहकर पुकारा है।निश्चित रूप से यह विद्रोह भारतवासियों का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था।इसे जिसके जोश और बहादुरी ने स्वतंत्रता संग्राम का नाम दिया,उस वीर महापुरुष मंगल पांडे का आज 19 जुलाई को जन्मदिवस है।आपका जन्म 1827 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के दुगवा नामक गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।हालाँकि कुछ इतिहासकार इनका जन्म स्थान फैजाबाद के गांव सुरहुरपुर को मानते हैं।
1857 का संग्राम एक सैनिक विद्रोह के रूप में प्रारंभ हुआ किन्तु शीघ्र ही इसने जन-आन्दोलन का रूप ले लिया और यह चारों ओर फ़ैल गया।हम कह सकते हैं कि विद्रोह की चिंगारी मंगल पांडे द्वारा ही लगाईं गई।बैरकपुर में मंगल पाण्डे क्रांति के अग्रदूत बने।अंग्रेजों के अत्याचार भारत में बढ़ते ही जा रहे थे और पूरा देश आज़ादी के सपने देखने लगा था।मंगल पाण्डे जिस सेना में थे,वहां एक नई रायफल को लाया गया।इस एनफ़ील्ड 53 में कारतूस भरने के लिए रायफल को मुंह से खोलना पड़ता था और यह अफवाह फ़ैल गई कि इस रायफल में गाय व सुअर की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता है।इस बात ने तो पूरी सेना में हडकंप मचा दिया।सब ऐसा सोचने लगे कि अंग्रेजों ने हिन्दू और मुसलमान के बीच विवाद पैदा करने के लिए ऐसा किया है।हिन्दू सोचते थे कि अँगरेज़ उनका धर्म भ्रष्ट कर रहे हैं क्योंकि हिन्दुओं के लिए तो गाय उनकी माता के समान है तथा मुस्लिमों को सुअर की चर्बी से दिक्कत थी।इन हरकतों से सबके अन्दर बगावत की भावना जाग उठी।9 फरवरी 1857 को जब इस रायफल को सेना में बांटा गया और उपयोग के लिए मुंह से लगाने को कहा गया तो मंगल पाण्डे ने ऐसा करने से मना कर दिया।इस कारण उन्हें अँगरेज़ अफसर के गुस्से का सामना भी करना पड़ा।इसके बाद उनको सेना से निकालने का फैसला लिया गया।स्वतंत्रता प्राप्ति के भावातिरेक में मंगल पांडे ने स्वयं को विद्रोही घोषित कर दिया और सैनिकों की बैरकों में क्रांति का प्रचार करने लगे।अधिकांश सैनिकों ने उनका समर्थन किया।मेजर हडसन ने उनको बंदी बनाने की आज्ञा दी,किन्तु कोई भी उनको बंदी बनाने के लिए तैयार नहीं हुआ।एक अँगरेज़ अफसर जैसे ही आगे बढ़ा,मंगल पाण्डे ने तुरंत उसको अपनी गोली का निशाना बना दिया।एक और अफसर आगे बढ़ा तो उसको भी इस वीर की गोली का शिकार होना पड़ा।जब कर्नल व्हीलर ने मंगल पाण्डे को बंदी बनाने की आज्ञा दी तो भी कोई सैनिक अपने स्थान से टस से मस नहीं हुआ।अंत में जब संघर्ष हुआ तो घायल अवस्था में मंगल पांडे को बंदी बनाया जा सका।उनपर मुकदमा चलाया गया और उनको फांसी दे दी गई।यह घटना बैरकपुर में 29 मार्च 1857 को घटित हुई।6 अप्रैल 1857 को फैसला हुआ कि 18 अप्रैल को उन्हें फांसी दी जाएगी लेकिन ब्रिटिश सरकार को इनका ऐसा डर बैठ गया था कि उनको जल्द से जल्द ख़त्म कर देने की कोशिश होने लगी।इसलिए 18 की जगह 10 दिन पहले 8 अप्रैल को ही मंगल पाण्डे को फांसी पर लटका दिया गया।इस वीर सैनिक की वीरता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी मौत के बाद भी उनका ऐसा भय बैठा हुआ था कि अँगरेज़ अफसर उनकी लाश के पास जाने से भी कतरा रहे थे।इस घटना से सैनिकों में इतना अधिक उत्साह भर गया कि उनके लिए 31 मई तक प्रतीक्षा करना असंभव हो गया क्योंकि केंद्र में बनी योजना के अनुसार सारे देश में 31 मई,1857 को एक साथ विद्रोह की ज्वाला भड़कने की तैयारी की गई थी जिससे अंग्रेजों के लिए एक साथ सारे देश में विद्रोह का सामना करना कठिन हो जाता लेकिन सारी जनता और सैनिक इतने ज़्यादा तंग थे और सैनिकों में मंगल पांडे की वीरता भरे बलिदान से इतना उत्साह भर गया कि उन्होंने मेरठ में 10 मई और दिल्ली में 11 मई को विद्रोह प्रारंभ कर दिया।हालाँकि इस विद्रोह को अंग्रेजों ने अपने अत्याचारों और क्रूरता से दबा तो दिया लेकिन वास्तव में भारतियों के मन में संघर्ष और क्रांति का जज़्बा इसी बहादुर मंगल पांडे ने भरा।हालाँकि उन्होंने जिस बात की शुरुआत की ।उसे अपने लक्ष्य तक पहुँचने में 90 साल का लम्बा सफ़र तय करना पड़ा।पर यह उनकी प्रेरणा ही थी जिसके कारण लाखों लोग स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद पड़े और इन्हीं शुरूआती प्रयासों और बलिदान के परिणामस्वरूप हमें 1947 को आज़ादी का स्वाद चखने को मिला।
मंगल पांडे द्वारा किये गये कार्यों और बलिदान के परिणामस्वरूप ही अँगरेज़ सरकार ने यह मान लिया कि सैनिक अब कारतूसों पर ग्रीज़ के तौर पर घी का उपयोग कर सकते हैं।इसके लिए लार्ड कैनिंग ने प्रस्ताव पारित किया।
5 अक्टूबर 1984 में भारत सरकार ने मंगल पांडे को पहला स्वतंत्रता सेनानी मानते हुए उन पर डाक टिकट जारी किया।मंगल पांडे ने अंग्रेजों को इतना डरा दिया था कि अँगरेज़ उनसे नफरत करने लगे थे और इसी कारण अंग्रेजों ने एक नए अंग्रेजी शब्द ‘पाण्डे’ को अपनी भाषा में स्थान दिया जिसका अर्थ उन्होंने ट्रेटर (देशद्रोही,विश्वासघाती) रखा।हालाँकि यह शब्द बाद में बोल-चाल की भाषा में इस्तेमाल नहीं हुआ इसलिए अब इसका प्रयोग कम किया जाता है पर इससे इस महानायक की वीरता का अंदाज़ा तो अवश्य ही लगाया जा सकता है।
यह सब बातें जो अब इतिहास का हिस्सा हो गईं हैं उन्हें हम जब पढ़ते हैं तो पता चलता है कि आज़ादी की क्या कीमत हमारे इन वीरों को चुकानी पड़ी?निश्चित रूप से मंगल पांडे भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और पहली बार इन्हीं के नाम के आगे शहीद लगाया गया।इस वीर सपूत को शत-शत नमन और हमारी सच्ची श्रद्धांजलि उनको यही होगी कि हम पुराने इतिहास से कुछ सीखें और देश के हित में कंधे से कन्धा मिलाकर आगे बढ़ें।नहीं तो हम समझ नहीं पा रहे हैं कि क्या होगा?एक कवि ने कितना सटीक कहा है-
‘न मानोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्तान वालों।
तुम्हारा नामलेवा तक न होगा दास्तानों में।’
लेकिन किसी को भी यह नहीं समझना चाहिए कि हमारे देश में देशद्रोही ही रहते हैं।यहाँ ऐसे ऐसे देशभक्त हैं कि जिन्हें याद करते ही आँखों में आंसू उमड़ पड़ते हैं।यह क्रम आज भी जारी है।हमारे वीर सैनिक सीमाओं पर किस निडरता से अपनी जान की परवाह किये बिना इस धरती माँ की रक्षा में प्रहरी बनकर खड़े हैं।किसी ने सच ही कहा है-
क्या हुआ गर मिट गये अपने वतन के वास्ते।
बुलबुलें कुरबान होती हैं चमन के वास्ते।।
अमर क्रान्तिकारी, भारत के प्रथम स्वतन्त्रता सेनानी मङ्गल पाण्डे को शत शत नमन।राष्ट्र रक्षा के समान पुण्य, व्रत और यज्ञ कोई नहीं है…..
राष्ट्र रक्षा समं पुण्यं,
राष्ट्र रक्षा समं व्रतं।
राष्ट्र रक्षा समं यज्ञो,
दृष्टो नैव च नैव च।।
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा…