Blog

मुफ्त सलाह

जैसा कि मैंने अपने पाठकों से वादा किया था कि कुछ लेख हास्य-व्यंग्य से परिपूर्ण भी पेश किया करुँगी तो आज काफी दिनों बाद मैं आपके होठों पर मुस्कुराहट लाने के लिए ‘मुफ्त सलाह’ पेश कर रही हूँ।उम्मीद है कि आपको मज़ा आएगा-

सलाह लेने और सलाह देने की परम्परा आदिकाल से ही चली आ रही है।प्रजातंत्र में तो सब कुछ सलाह पर चलता है।जनता के चुने हुए प्रतिनिधि मंत्रिमंडल को सलाह देते हैं।मंत्रिमंडल राज्यपाल और राष्ट्रपति को सलाह देता है।सर्वाधिकार और सर्वसाधन संपन्न होकर भी राष्ट्रपति या राज्यपाल बिना सलाह कुछ निर्णय कर ही नहीं सकते जबकि हम सभी जानते हैं कि वे बहुत योग्य एवं अनुभवी होते हैं।राज्यतंत्र में राजा भी सलाह लेता था।कबीलों के सरदार भी मौका पड़ने पर अपने योद्धाओं और समझदार लोगों से सलाह ले लेते थे।अब यह बात अलग है कि सलाह मानना या न मानना उनकी अपनी इच्छा पर निर्भर था लेकिन आज प्रजातंत्र में ऐसा नहीं है।

कुछ लोग सलाह लेने के आदी होते हैं।जैसे ही कोई बात आड़े आई कि पहुँच गये सलाह लेने।फिर एक-दो लोगों की सलाह से उनका दिल नहीं भरता बल्कि जितने लोगों से भी संभव हो,वे सलाह लेते जाते हैं।यही कारण है कि अंतिम सलाहकार से बात होते-होते कई बार उस बात का मतलब ही बदल जाता है या परिस्थितियां ही बदल जाती हैं।ऐसे में यदि इन लोगों को यह कहा जाए कि आपने बेकार ही इस बात का इतना बतंगड़ बनाया और इतने लोगों से पूछ-पूछ कर अपना भी और दूसरे का भी समय ख़राब किया तो इन लोगों का जवाब होगा, “अरे तो क्या हो गया?इतने लोगों से बात करके अपना मन तो हल्का हो गया।” अब अपना मन हल्का करने के लिए इन्होंने दूसरे का कितना दिमाग और समय दोनों ख़राब किया इससे उन्हें कोई लेना-देना नहीं।

वैसे रोग में डॉक्टर की और मुक़दमे में वकील की सलाह हर आम व खास को लेनी पड़ती है क्योंकि वे इन मामलों के विशेषज्ञ होते हैं लेकिन हद तो तब होती है जब ऐसे लोग खुद ही विशेषज्ञ बन जाते हैं और अपने या अपनों के लिए तो जाने दें बल्कि हर आते-जाते व्यक्ति और मोहल्ले के लोगों को भी मुफ्त सलाह देने का मोह नहीं छोड़ पाते।छोटी-मोटी बीमारी की बात पर तो ठीक है घरेलू नुस्खे काम आ जाते हैं और लोग एक-दूसरे को इन नुस्खों का आदान-प्रदान करते भी हैं लेकिन ऐसे मुफ्त सलाहकार बड़ी-बड़ी गंभीर बिमारियों पर भी अपना पूरा दखल रखते हैं और ऐसा एक्सपर्ट एडवाइस देते हैं कि यकीन मानिए कि उस बीमारी के विशेषज्ञ डाक्टर का आत्मविश्वास भी ऐसे सलाहकार के आगे नतमस्तक हो जाए।एक बार मुझे साँस की तकलीफ होने पर मैं डाक्टर के गई तो वहां एक व्यक्ति अपने वृद्ध पिता को दिखाने आये हुए थे,जिनको काफी तकलीफ थी।डाक्टर के चैम्बर में जाने तक जितनी देर वे सज्जन बाहर बैठे उतनी देर अपने पिता को तरह-तरह की नसीहत देते रहे और रुवाब गांठते रहे कि हमने तो पी.जी.आई. में दिखाया है और मेडिकल कॉलेज के भी कई डाक्टरों के नाम ले-लेकर बता रहे थे ताकि वहां बैठे हम सब लोग उनकी बातों से प्रभावित हो जाएँ।वास्तव में उनकी फाइल बहुत मोटी-सी थी और उन्होंने कई डाक्टरों को दिखाया हुआ था।बात-बात में अपने पिता की तरफ मुखातिब होकर उन्होंने बाकी बैठे सभी मरीजों को यह भी सुना दिया कि यहाँ इन डाक्टर का नाम सुनकर वे आ गये हैं कि एक सलाह इनकी भी हो जाए।जैसे सलाह लेना कोई इलाज है।इतनी सलाहें लेने के बाद भी इतने महीनों से अभी वे इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाए थे कि इलाज क्या करना है और किस डाक्टर का?उनके पिता की तकलीफ साफ नज़र आ रही थी बेचारे बहुत कष्ट में थे।उनका नम्बर आने पर वे पिता-पुत्र डाक्टर के चैम्बर में गये जो पास में ही था और सारी आवाज़ बाहर भी सुनाई दे रही थी।जाते ही उन्होंने अपना ज्ञान बघारना शुरू कर दिया कि कैसे उन्होंने अपने पिता का इलाज कराया और कितने डाक्टर और अस्पताल में उन्होंने दिखा दिया।बहुत सारे टेस्ट और एक्स-रे आदि उन्होंने मन से भी करा दिए थे जिनकी कोई आवश्यकता नहीं थी।डाक्टर ने जब पूछा कि यह एक्स-रे और जांच जिनका कोई मतलब ही नहीं आपने किस डाक्टर के कहने पर कराएँ हैं तो वे सज्जन सगर्व बोले कि “मैंने खुद कराई ताकि कुछ पता चल सके।” इस पर जब डाक्टर ने पूछा कि “कुछ पता चला?” तो उनको कोई जवाब नहीं सूझा।आप समझ सकते हैं कि इन बातों से डाक्टर को कितना गुस्सा आया होगा और फिर उनको जो खरी-खोटी सुनने को मिली उससे बाहर बैठे मरीजों को भी मज़ा आ गया।डाक्टर ने सभी मरीजों को सुनाते हुए कहा कि “डाक्टर कोई कपड़े की दुकान नहीं है जहाँ पसंद न आने पर दुकान बदल कर कपड़े भी बदल लिए जाएँ।आप दुकान-दुकान खेलना बंद करिए वरना आपके पिता की फाइल तो मोटी होती जाएगी लेकिन उनका रोग और कष्ट नहीं घटेगा।” खिसिया कर वे बेचारे डाक्टर के पास से बाहर आये।ईश्वर उन्हें अब सद्बुद्धि दे।

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं कि हर ऐरे गैरे की सलाह लेकर अपने दिमाग की कसरत करते रहते हैं।स्वयं तो आँखों पर पट्टी बंधे बैल की तरह चक्कर काटा करते हैं।उनकी आदत ही सलाह लेने की पड़ जाती है।जिस बात का आसानी से निर्णय लिया जा सकता है उसे ही एक नहीं कई-कई लोगों से ज़िक्र करके उस व्यक्ति के भेजे को भी गोबर बना देते हैं और अपना तो समय ख़राब करते ही हैं।कुछ होशियार लोग बड़े प्रेम से ‘हाँ’ या ‘हूँ’ में उत्तर देते हैं और ध्यान से सुनने की भी ज़रूरत नहीं समझते क्योंकि उन्हें पता होता है कि यहाँ उनकी सलाह की कोई कद्र नहीं है यह तो सिर्फ अमुक व्यक्ति की आदत उन्हें ऐसा करने पर मज़बूर कर रही है।लेकिन इसके विपरीत कुछ ज्ञानी लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें ऐसे किसी व्यक्ति के पास आते ही आभास हो जाता है कि इसे सलाह की ज़रूरत है और बस उनका सलाहकार मस्तिष्क एकदम सजग हो जाता है।ऐसे लोग किसी बड़ी बीमारी से ग्रस्त मरीज के घरवालों को मिलते ही अपनी सलाह देंगे।जिस डाक्टर या अस्पताल में वे दिखा रहे होंगे उसकी दस बुराइयाँ बता कर दूसरे किसी डाक्टर या अस्पताल में दिखाने का उपदेश देना शुरू कर देंगे।चाहे सुनने वाले की इच्छा हो या नहीं लेकिन इनकी सलाह का बंटना तब तक जारी रहता है जब तक सामने वाला हाथ जोड़कर जाने की अनुमति नहीं ले लेता।इसी बीच गंभीर और असाध्य बीमारी के मरीजों के लिए घरेलू नुस्खे भी दे दिए जाएँगे जिनका कोई व्यावहारिक लाभ उन्हें पता नहीं होता लेकिन प्रदर्शित वे ऐसा करते हैं कि इस विषय में उन्हें बहुत ज्ञान है।इनकी इतनी योग्यता से डर कर लोग इनसे बात करने में भी डरते हैं।इनमें अधिक संख्या अवकाशप्राप्त बुजुर्गों की होती है।बहुत से प्रौढ़ लोग भी उम्र की प्रौढ़ता का लाभ उठाकर सलाह विशेषज्ञ बन जाते हैं।ऐसे लोग मौका तलाशा करते हैं,पूछ-ताछ किया करते हैं ताकि किसी को सलाह देने जा पहुंचे।कोई इनसे सलाह मांगे या न मांगे पर ये जा ही पहुँचते हैं।आदमी को भैंसा या बैल समझ कर उसके कानों से अपने सलाह रूपी भूसे को मस्तिष्क में भरने लगते हैं।

अपनी सलाह लेने की आदत के अनुसार एक बार रमाकांत जी ने मोहल्ले के ही नरेश जी से कहा कि “आपसे कुछ सलाह लेनी है।” “हुक्म कीजिये।” नरेश जी ने कहा।

“लड़की की शादी तय हो रही है सोचा आपसे सलाह कर लूँ।” रमाकांत जी बोले। “ज़रूर-ज़रूर।अति सुन्दर सम्बन्ध है तुरंत कर दें।” नरेश जी ने हर्षित स्वर में उत्तर दिया।क्योंकि नरेश जी को मालूम था कि तिलक हो चुका है और अगले सप्ताह बारात आएगी।सब कुछ तो तय था पर रमाकांत जी की आदत थी सलाह लेने की।सही बात है सातवीं भांवर तक कन्या पिता की ही रहती है।इसलिए तब तक तो सलाह लेने का इन्हें अधिकार है ही।

संसद सदस्य,विधायक एवं मंत्रीगण सलाह देने का काम सवेतन करते हैं।विशेषज्ञ अपनी योग्यता की कीमत लेते हैं परन्तु उनके अतिरिक्त सभी सलाहकार मुफ्त सलाह देते हैं।उनकी सलाह की कीमत बहुधा वही होती है जो बिना मूल्य वाली वस्तुओं की होती है।वैसे सब से अधिक सलाह देने का शौक इन बिना मांगे सलाह देने की आदत वालों को होता है।बिना मूल्य सलाह देने वाले यह बेचारे स्वयं दौड़े जाते हैं और बिना मांगे अपनी बिना मूल्य की अमूल्य सलाह की पिचकारी से लोगों को भिगो देते हैं।अब वह बात अलग है कि इनकी पिचकारी के रंग किसको कितने पसंद आते हैं?

राजनीति और समाज में सलाह देने वाले ‘नेता’ नाम से पुकारे जाते हैं।वे सिर्फ दूसरों को सलाह देते हैं और यह अपेक्षा रखते हैं कि उनकी दी गई सलाह का पालन किया जाए।परन्तु स्वयं वे इन बातों पर अमल करना या पालन करना नियम विरुद्ध,धर्म विरुद्ध और नैतिकता विरुद्ध समझते हैं।ऐसा ही कुछ धर्म गुरुओं का भी हाल रहता है।इसी प्रकार शायर और कवि सब को सलाह देने के आदी हो जाते हैं।वे इस काम के लिए बीड़ा उठा लेते हैं।

इस प्रकार सलाह लेने और देने की यह परम्परा कब शुरू हुई?जैसे इस बात का पता हममें से किसी को नहीं है वैसे ही यह परम्परा कब तक चलेगी इस बात को भी कोई नहीं बता सकता है।हाँ इस मुद्दे पर एक सलाह ज़रूर ली जा सकती है………

 

One thought on “मुफ्त सलाह

  1. लेख को पढ़कर मुझे ऐसा लगता है, कि हर व्यक्ति किसी डॉक्टर से कम नहीं है। आपको भले कोई शारीरिक तकलीफ या बीमारी हो, हर आने-जाने वाला मजे में आपको कोई दवाई या फिर किसी डॉक्टर का नाम बता ही देगा और कहेगा कि उसने फलां-फलां व्यक्ति की फलां बीमारी चंद दिनों में ठीक कर दी। ऐसे ‘रायचंद’ या ‘रायबहादुर’ आपको हर जगह मिल जाएंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top
+