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कृषि क़ानूनों पर कानूनविद डॉ. भारत जी के विचार

हेमंत में बहुधा घनों से पूर्ण रहता व्योम है
पावस निशाओं में तथा हंसता शरद का सोम है

हो जाए अच्छी भी फसल, पर लाभ कृषकों को कहां?
खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रखे जहां

आता महाजन के यहां वह अन्न सारा अंत में
अधपेट खाकर फिर उन्हें है कांपना हेमंत में

बरसा रहा है रवि अनल,भूतल तवा सा जल रहा
है चल रहा सन-सन पवन,तन से पसीना बह रहा

देखो कृषक शोषित,सुखाकर हल तथापि चला रहे
किस लोभ से इस आंच में,वे निज शरीर जला रहे

घनघोर वर्षा हो रही,है गगन गर्जन कर रहा
घर से निकलने को गरजकर,वज्र वर्जन कर रहा

तो भी कृषक मैदान में करते निरंतर काम हैं
किस लोभ से वे आज भी,लेते नहीं विश्राम हैं

बाहर निकलना मौत है, आधी अंधेरी रात है
है शीत कैसा पड़ रहा,औ’ थरथराता गात है

तो भी कृषक ईंधन जलाकर,खेत पर हैं जागते
यह लाभ कैसा है, न जिसका मोह अब भी त्यागते

संप्रति कहाँ क्या हो रहा है, कुछ न उनको ज्ञान है
है वायु कैसी चल रही,इसका न कुछ भी ध्यान है

मानो भुवन से भिन्न उनका,दूसरा ही लोक है
शशि सूर्य हैं फिर भी कहीं,उनमें नहीं आलोक है।

कई वर्षों पूर्व, राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त जी ने किसानों की दशा पर यह कविता लिखी थी,लेकिन आज भी जब हम इन पंक्तियों को पढ़ते हैं तो लगता है कि आज के किसान की भी लगभग वही दशा है।यानि इतने साल बीतने के बाद भी कुछ ख़ास बदला नहीं है।
इस वैश्विक महामारी के दौर में,कड़ाके की ठंड के बीच हमारे किसान सड़कों पर बैठे हैं और उनका एक ही विरोध है कि किसानों से जुड़े इन तीनों कानूनों को वापस लिया जाए।
आखिर इन तीनों कानूनों में ऐसा क्या है कि किसान तो इसका विरोध कर रहे हैं और सरकार इसे आत्मनिर्भर भारत से जोड़ रही है।इन सब बातों पर चर्चा करने के लिए आज मैंने डॉ. भारत जी को अपने पॉडकास्ट में आमंत्रित किया।डॉ. भारत पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के विधि अध्ययन संस्थान में लॉ के सहायक प्रोफेसर के रूप में सन 2008 से कार्यरत हैं तथा उन्हें अध्यापन एवं शोध कार्यों का भी गहन एवं व्यापक अनुभव है।
शोध कार्यों में पैनी नज़र रखने के कारण आप के सामयिक विषयों पर कई लेख एवं विचार प्रतिष्ठित जरनल्स और राष्ट्रीय समाचारपत्रों में प्रकाशित हो चुके हैं।आकाशवाणी से भी आपकी वार्ताएं प्रसारित होती रहती हैं।
वे पंजाब विश्वविद्यालय में ‘सहायक जनसंपर्क अधिकारी’ के रूप में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
डॉ.भारत से मैंने किसानों से जुड़े तीनों कानूनों के बारे में संक्षेप में जाना तथा इस बात की भी चर्चा की कि हम लोग मानवाधिकारों की या अभिव्यक्ति की आज़ादी की बात करते हैं परंतु हम यह भी देखते हैं कि चाहे किसान आंदोलन हो या शाहीन बाग, इन जगहों पर छोटे छोटे बच्चों को भी प्रदर्शन में शामिल होने के लिए लाया जाता है, जिन्हें इन कानूनों का या बातों का कोई भी ज्ञान ही नहीं है।वे तो यह भी नहीं जानते कि वे यहां क्यों हैं?और भी बहुत से लोग भीड़ में ऐसे दिखते हैं, जिन्हें इन कानूनों के बारे में कुछ पता नहीं,बस उनको तो इस कानून को वापस करवाना है।विरोध के लिए विरोध प्रदर्शन हो रहा है।ऐसे में मानवाधिकारों की बात कहां तक उचित है?
एक प्रश्न और भी मन मे उठता है कि यह जब किसान आंदोलन है तो टुकड़े गैंग के पक्ष में बातें होना,महात्मा गांधी की मूर्ति पर खालिस्तान का झंडा लगाना या देश के प्रधानमंत्री को खड़े होकर कोसना कहाँ तक उचित है?
इन सभी सवालों के जवाब डॉ. भारत ने हमें दिए और कई तथ्यों से हमें अवगत करवाया।

One thought on “कृषि क़ानूनों पर कानूनविद डॉ. भारत जी के विचार

  1. December 16, 2020 at 9:02 pm
    कृषि कानून पर बहुत ही सार्थक एवं सामयिक परिचर्चा के लिये आप दोनों को बहुत बहुत बधाई।कुछ अराजक तत्व ,महाञानी राजनीतिक स्वार्थ के लिये किसानों को भटका रहे हैं ।सिर्फ और सिर्फ विरोध के लिये विरोध हो रहा ।अञानता और राजनीतिक स्वार्थ से परिपूर्ण इस तरह के विरोध का दुष्परिणाम हमारी आने वाली पीढीयों के लियेअहितकारी है ।पढे लिखे लोग दुष्प्रचार में लगे हैं ऐसे में आप जैसे लोगों हमारे समाज को जागृत करने में प्रयत्नशील है इसके लिये आप दोनों को साधुवाद ।

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