Blog दक्षिण भारत के रंग

कन्नड़ साहित्य:उद्गम एवं विकास

साहित्य को हम देश काल या भाषा की हदों से नहीं बांध सकते।भाषा कोई भी हो,यदि सृजन अच्छा हुआ है तो उसे पढ़ने-सुनने से कोई रोक नही सकता।

सूफी प्रेमाख्यानक काव्य के प्रवर्तक कवि मलिक मुहम्मद जायसी जी की कर्मभूमि जायस हम कई बार गए और उनकी मजार पर माथा टेका।
हम उस उत्तर प्रदेश की भूमि पर हैं, जो कबीर,रैदास,सूरदास और तुलसीदास जैसे संत और महाकवियों की जन्मभूमि भी रही और कर्मभूमि भी।छायावाद के कवि जयशंकर प्रसाद,महादेवी वर्मा,निराला जी हरिवंशराय बच्चन इन सबकी जन्मभूमि और कर्मभूमि सब प्रयाग और काशी ही रहे जहां मुझे भी सैकड़ों बार जाने का सुअवसर मिला।यह स्थान हम सबके लिए साहित्य के मंदिर जैसे ही हैं।इनके अलावा भी अनगिनत ऐसे नाम हैं, जिन्होंने उत्तर प्रदेश की इस पावन भूमि को अपनी लेखनी से धन्य किया।

इन सब बातों से साहित्य से एक ऐसा लगाव और अपनापन हो गया कि इनके बिना जीवन ही अधूरा लगता है।हम सब हिंदी साहित्य को तो पढ़ते और सुनते हैं, लेकिन हमारी क्षेत्रीय भाषाएं,जिनका विपुल साहित्य है और बेजोड़ है, उससे भी हमें परिचित होना उतना ही ज़रूरी है क्योंकि हिंदी यदि माला है तो सभी क्षेत्रीय भाषाएं उस माला के अमूल्य मोती हैं, जो आपस में गुंथे हुए ही अच्छे लगते हैं।इन सब मोतियों की सुंदरता को देखने के लिए हर भाषा के साहित्य से परिचित होना आवश्यक है।
यह हमारा सौभाग्य है कि आज हमें कन्नड़ साहित्य के उद्गम एवं विकास के बारे में जानने का अवसर मिलेगा।कन्नड़ साहित्य का इतिहास लगभग डेढ़ हज़ार वर्ष पुराना है।

इस विषय पर विस्तार से जानकारी देने के लिए विदुषी साहित्यकार स्वर्ण ज्योति जी हमारे साथ हैं, जो पिछले 28 वर्षों से अहिन्दी भाषी क्षेत्र पॉन्डिचेरी में हिंदी के प्रचार-प्रसार में अनवरत लगी हुई हैं।उनका कहना है कि वे किसी संस्था से न जुड़कर केवल हिंदी से जुड़ी हैं और हिंदी के लिए ही काम करती हैं।

आपकी मातृभाषा कन्नड़ होते हुए भी वे जिस अधिकार से हिंदी बोलती हैं, उसी अधिकार से कन्नड़ साहित्य को भी लिखती पढ़ती हैं।तमिल साहित्य पर भी आपका समान अधिकार है।

आपने साहित्य की कई विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई है।वे कवयित्री, लेखिका, समीक्षक और अनुवादिका हैं।आपने कन्नड़ से हिंदी और हिंदी से कन्नड़ में अनुवाद किये हैं।इसी तरह तमिल से हिंदी और हिंदी से तमिल में भी अनुवाद किये।आपके दो काव्य-संग्रह तथा एक कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुका है।एक काव्य-संग्रह तथा एक उपन्यास प्रकाशनाधीन है।आपकी अनुदित रचनाएं भी साहित्य के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखतीं हैं।गोवा की पूर्व राज्यपाल मृदुला सिन्हा जी की पुस्तक ‘परितप्त लंकेश्वरी’ का आपने हिंदी से कन्नड़ में अनुवाद किया।डॉ. उज्ज्वल पाटनी की ‘नेटवर्क मार्केटिंग’ का हिंदी से कन्नड़ में अनुवाद किया। आपकी अन्य अनुदित रचनाएं भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं।

आपको अनेकों सम्मानों द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है।2019 में भाषा सहोदरी हिंदी न्यास दिल्ली द्वारा सम्मानित की जा चुकीं हैं।पॉन्डिचेरी की उप राज्यपाल महामहिम डॉ. किरन बेदी जी द्वारा 2016 में हिंदी के प्रचार एवं प्रसार के लिए सम्मानित।2013 में पॉन्डिचेरी के उप राज्यपाल महामहिम डॉ. इक़बाल सिंह जी द्वारा हिंदी के प्रचार एवं प्रसार हेतु सम्मानित।2009 में कर्नाटक के पूर्व राज्यपाल श्री टी.एन. चतुर्वेदी के द्वारा कर्नाटक राज भवन में जैन ग्रंथ के अनुवाद हेतु सम्मानित।भारतीय भाषा और संस्कृति केंद्र द्वारा राजभाषा सम्मेलन में सम्मानित।कर्नाटका जागृति वैदिके द्वारा ‘करूनाड भूषण’ प्रशस्ति पत्र प्राप्त किया।
उनकी एक विशेष उपलब्धि यह भी है कि पॉन्डिचेरी विश्वविद्यालय की एक छात्रा के द्वारा आपके काव्य संग्रह ‘अच्छा लगता है’ पर शोध पत्र प्रस्तुत किया गया है।

तो बहुमुखी प्रतिभा की धनी विदुषी साहित्यकार स्वर्ण ज्योति जी के विचारों को जानने के लिए आज के पॉडकास्ट को सुनें।

कन्नड़ साहित्य:उद्गम एवं विकास-

अजय आवारा जी की ‘कलम’ से

इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि भारतीय संस्कृति की अनगिनत धरोहरें हैं और साहित्य भी उनमें से एक हिस्सा रहा है।भारतीय भाषाओं के सम्पूर्ण साहित्य का अध्ययन किया जाए, तो शायद यह पूरे विश्व की संस्कृति को जानने से भी वृहद होगा।हमारा देश, अनेक भाषाओं का देश रहा है ,अनेक परंपराओं का देश रहा है। क्योंकि हमारे देश में भाषाओं की लंबी सूची रही है, तो साहित्य के भी अनेक रूप मिल जाना स्वाभाविक ही है।
जहां, संस्कृत सभी भाषाओं की जनक रही है, वहीं इसकी संतान भाषाओं ने भी अपनी श्रेष्ठता को साबित किया है।यहां मैंने संस्कृत को सभी भाषाओं की जनक कहा है तो इससे कुछ लोगों के मन में यह प्रश्न खड़ा हो सकता है कि मैंने संस्कृत को भारतीय भाषाओं की जननी क्यों नहीं कहा ? इस बारे में मेरा यह तर्क है कि जननी और जनक में यह फर्क होता है कि जननी जन्मदात्री होती है और जनक जो हमारे अस्तित्व का मूल होता है। जैसे मां जननी होती है और पिता जनक। मेरे विचार से संस्कृत में भारतीय भाषाओं का मूल है, संस्कृत के विभिन्न रूपों के अपभ्रंश बनकर विभिन्न भारतीय भाषाएं बनी हैं, संस्कृत से सीधे उत्पत्ति नहीं हुई है।
दक्षिण भारत की भाषाओं का एक बड़ा गौरवशाली इतिहास रहा है। इन्हें अनुसरणीय कहे जाने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। दक्षिण भारतीय भाषाओं ने स्वयं को भी समृद्ध किया एवं भारतीय संस्कृति को भी गौरवान्वित किया।
कन्नड़ साहित्य का उद्गम, नवी शताब्दी में देखा जा सकता है जब कविराजमार्ग ने पहला काव्य लिखा।
इसके बाद कहते है कि जैन समाज द्वारा ही कन्नड़ साहित्य लिखा जाता रहा। जिन्होंने इसे उत्कृष्ट साहित्य के रूप में स्थापित किया।
कन्नड़ साहित्य को मूलतः तीन युगों में बांटा जा सकता है- प्राचीन साहित्य मध्यकालीन साहित्य एवं आधुनिक साहित्य।विगत 50 वर्षों में तो कन्नड़ साहित्य ने आशातीत प्रगति की है।
कन्नड़ साहित्य के विकास में यहां के शासकों का बहुत बड़ा हाथ रहा है।जहां होय्शाला एवं विजय नगर शासकों ने इसे मजबूत आधार दिया, वहीं मैसूर के शासकों द्वारा भव्य इमारत खड़ी कर दी गई। इसके अलावा चालुक्य, गंगा, राष्ट्रकूट एवं यादव शासकों ने भी इसे सदृढ़ आधार देने में अहम भूमिका निभाई। शासकों के प्रधान का असर यह हुआ कि कन्नड़ साहित्य आम जनमानस के रोम-रोम में बस गया। इसे बड़े ही जतन से दुलारा गया। फलस्वरुप कन्नड़ साहित्य दक्षिण भारत ही नहीं, अपितु हिंदुस्तान की शान बन कर उभरा है।
वरना कन्नड़ साहित्य को यूं ही अधिकतम पुरस्कार एवं सम्मान नहीं मिल गए। 8 ज्ञानपीठ पुरस्कार, 63 साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं 9 साहित्य अकादमी फेलोशिप ले कर कन्नड़ साहित्य शीर्ष पर है। कन्नड़ साहित्य मात्र भाषा की अभिव्यक्ति भर नहीं रहा। अपितु सामाजिक एवं दार्शनिक विचारों से मथा हुआ महासागर भी है। जिसमें अनेक प्रतिभाशाली लेखकों ने अपने रत्न रख छोड़े हैं । चुन लें आप कितने चुन सकते हैं।

3 thoughts on “कन्नड़ साहित्य:उद्गम एवं विकास

  1. स्वर्ण ज्योति मैम आप भाषा के क्षेत्र में अत्यधिक आवश्यक एवं महत्त्वूर्ण कार्य कर रहीं है। आपको और अजय सर को साधुवाद।

  2. अतीव सुन्दर प्रस्तुति। रोचक जानकारी प्राप्त हुई। भाषा के माध्यम से उत्तर और दक्षिण को जोड़ने का सार्थक प्रयास।

  3. भावना आपके कार्यक्रमों को सुनना,हमेशा ही दिल को सुकून देता है।कितना हम पसंद करते हैं, आपके कार्यक्रमों को,आप जानती हैं।
    सार्थक एवं बेहतरीन प्रयास।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top
+