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अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष : मंथन

International Women’s Day special : Curtain Raiser

इस साल भी अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International women’s Day) की तिथि आ पहुंची है। पर क्या, हर बार की तरह इस बार भी सिर्फ वाद-विवाद, विवाद या विचारों की अभिव्यक्ति कर देना काफी रहेगा। क्या हमें इसके दूसरे पहलू पर विचार नहीं करना चाहिए ? जब महिला दिवस आता है, तब महिला अधिकारों की बात जोर-शोर से उठाई जाती है। इतिहास साक्षी रहा है, कि अधिकारों का अधिकतर दुरुपयोग ही हुआ है। आज कानून ने महिलाओं को अनेकों अधिकार तो दे दिए हैं, परंतु यह जगजाहिर है कि इन का सदुपयोग कम व दुरुपयोग बहुतायत से हो रहा है। आखिर हम किस दिशा में जा रहे हैं ? समाज ने पुरुषों को अधिकार देकर , जो असंतुलन पैदा किया, वही असंतुलन हम दूसरे रूप में फिर से वापस नहीं ला रहे? प्रश्न यह है, कि क्या अधिकार समानता ला सकता है। नहीं.. समानता के लिए सम्मान के भाव की आवश्यकता होती है। कल से ‘चुभन’ पर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International women’s Day) के कार्यक्रम शुरू होने जा रहे हैं।हम सब जानते ही हैं कि हर वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International women’s Day) किसी न किसी थीम पर आधारित होता है और इस बार का विषय है – ‘एक स्थायी कल के लिए आज लैंगिक समानता ज़रुरी’।इस अवसर पर अन्य माध्यमों पर भी अनेकों कार्यक्रम होंगे। आइए, इस बार अधिकार भावना के स्थान पर कुछ ऐसा सोचा जाए, कुछ ऐसा विचार किया जाए जो इस असमानता को हमेशा के लिए मिटा सके।
यह बड़ा ही अच्छा संयोग है कि ‘चुभन’ अपने इन कार्यक्रमों का आरंभ 1 मार्च से कर रहा है, इस दिन महा शिवरात्रि का पावन पर्व भी है। सर्वप्रथम तो श्रोताओं को शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं। आइए, अब देखते हैं कि शिवरात्रि एवं ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ में क्या समानता है ? ‘अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस’, महिला के अधिकारों की बात करता है। जबकि अगर हम शिवरात्रि की बात करें तो यह भगवान शिव से संबंधित है। शिव का ही एक रूप है अर्धनारीश्वर। जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि मानवता पुरुष एवं स्त्री दोनों के संयोग से ही पूरी होती है। हम कितनी भी बात करें, परंतु सच्चाई यह है कि पुरुष के बिना नारी अधूरी है। उसी तरह नारी के बिना पुरुष भी अधूरा है। अर्धनारीश्वर रूप में पुरुष एवं स्त्री को एक समान भाव पर लाकर खड़ा किया है। इसका अर्थ यह है कि हमारी धार्मिक मान्यताओं में स्त्री एवं पुरुष में कोई भेदभाव नहीं किया गया है। फिर यह कुरीति कहां से आ गई? क्या यह हमारी विकृत मानसिकता की उपज है, कि आज समाज असंतुलित हो गया है ? जिस तरह पुरुषों को विशेष अधिकार देकर, हमने महिलाओं का दमन किया। तो क्या महिला को विशेष अधिकार देकर हम पुरुष और स्त्री के भेद का एक नया रूप खड़ा नहीं कर रहे हैं ? हम विशेष अधिकार की बात क्यों करें? समानता की बात क्यों ना करें ? नारी अस्मिता और नारी सम्मान की बात क्यों ना करें ?हम नारी के सहयोग की बात क्यों ना करें ? हम नारी को अपने जीवन का, अपने समाज का ऐसा हिस्सा क्यों ना माने, जिसके बिना पुरुष पूर्ण ही नहीं होता ? क्यों ना अब हम अर्धनारीश्वर रूप को लेकर आगे चलें ? क्यों ना हम महिला एवं पुरुष को समान रूप से साथ लेकर चलें ? अधिकार, सम्मान नहीं देते। सम्मान तो, सामाजिक व्यवस्था एवं मन के भाव देते हैं। तब क्यों न कोशिश की जाए समाज की रीत बदलने की ? पुरुषों की सोच बदलने की। क्यों ना एक परंपरा चलाई जाए नारी के सहयोग की ? पुरुष और नारी, अधिकारों में क्यों बंटे रहें ? क्या पुरुष और नारी एक दूसरे के सहयोग से नहीं जुड़ सकते ? क्या हम अर्धनारीश्वर के काल्पनिक रूप को साकार नहीं कर सकते?


यह हर्ष का विषय है कि इस वर्ष’अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ (International women’s Day) की थीम भी ‘चुभन’ की विचार धारा के सामानांतर है। इस बार की थीम अधिकार न हो कर वैचारिक समानता है। इस क्रम में आइए सुनें, कुछ तर्क संगत विचारों को, 1, 3, 5, 7 एवं 8 मार्च को, ‘चुभन पॉडकास्ट’ पर।
‘चुभन’ यह स्पष्ट कर देना चाहता है कि चर्चा एवं साक्षात्कार में व्यक्त विचार, विद्वानों एवं विशेषज्ञों के निजी विचार हैं, उन्हें किसी प्रकार से ‘चुभन’ का विश्लेषण न समझा जाए।

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