Blog

कट्टरपंथ बनाम धर्मनिरपेक्षता

पिछले पांच-छःदिन से लखनऊ काफी साहित्यिक और कलात्मक समारोहों के कारण चहल पहल से भरा रहा।कहीं पुस्तक मेला और कहीं सनतकदा फेस्टिवल….खैर ऐसे समारोह कला,सहित्य-संगीत की दृष्टि से बहुत उपयोगी,कलाकारों को सम्मान और उनको उचित स्थान देने वाले होते हैं इसमें तो कोई शक नहीं है लेकिन कभी कभी हम साहित्य संगीत या कला की आड़ में ऐसा भी बहुत कुछ लिख,गा या कह जाते हैं जो किसी भी दृष्टि से उचित नही होता।

मैं बात का ताना-बाना बुनने में इतना समय न बर्बाद करते हुए कल 5फ़रवरी को बारादरी में लगे सनतकदा फेस्टिवल का उल्लेख करना चाहूंगी।कल इस समारोह का अंतिम दिन था और मैं भी इसे देखने गई।पहले चार दिन व्यस्तता के कारण नही जा सकी और कल जब मैं एक आम दर्शक की तरह यहाँ पहुंची तो और सब कुछ तो ठीक है जैसा इन समारोहों में होता है वैसा ही था लेकिन वहीँ म्यूजिकल प्रोग्राम हो रहा था।कोई बैंड था और मैं नाम नही जान पाई क्योंकि कुछ लोगों से पूछा तो एक ही उत्तर मिला कि हम नाम नही जानते लेकिन कोई बहुत बड़ा और प्रसिद्ध रॉक बैंड है।उसमे काफी जोर शोर से कलाकार गा रहे थे और ड्रम तथा अन्य वाद्य यंत्रों का काफी ज्यादा इस्तेमाल हो रहा था खैर यह तो एक अलग मुद्दा है।कोई भी कलाकार अपनी कला को कैसे भी प्रस्तुत कर सकता है लेकिन वहां जो गाने गाये जा रहे थे उनके शब्द मेरी समझ में तो बिलकुल उचित नही थे या कहा जा सकता है बेसिर पैर के थे लेकिन दर्शकों में बैठे युवा वर्ग को मैंने देखा इन शब्दों पर ज़ोर शोर से तालियाँ बजा रहे थे और नाच रहे थे।मैं उस गाने की कुछ पंक्तिया नीचे लिख रही हूँ ज़रा आप भी गौर करें कि क्या इस गाने से कोई उचित सन्देश जाता है—

मस्जिद भी ले लो,ख़ुदा भी ले लो

भगवान भी ले लो,राम भी ले लो

बाबर भी ले लो,तुम हरा भी ले लो,

भगवा भी ले लो ……..

मगर तुम हमारे लहू से न खेलो…..

अब इस गाने में क्या है?मतलब यही निकला न कि यह सब चीज़ें हमारा लहू ले रही हैं।फिर वही बात आ जाती है कि हम सेकुलर बनने के लिए बाबर जैसे लुटेरे और आक्रमणकारी द्वारा मंदिर तोड़ कर बनाये गये मस्जिद को बचाना ज़्यादा महत्वपूर्ण समझते हैं क्योंकि शुरू से ही हम गलत इतिहास पढ़ते रहे हैं जिसमें मुग़ल शासकों का महिमामंडन किया जाता रहा है और उनके द्वारा मंदिर और उसकी मूर्तियों को तोड़ कर अपने मस्जिद की सीढ़ियों में डाले जाने का उल्लेख सुन कर भी हमारे कानों में अभी तक जूं नही रेंगी लेकिन अब जब अपने मंदिरों और धरोहरों को बचाने का उपक्रम किया जाता है तो ऐसा करने या बोलने वाले कट्टरपंथी और न जाने किन किन उपमाओं से संबोधित किये जाते हैं।मुझे इस गाने में जो एक लाइन सबसे ज़्यादा चुभी वह यह कि “राम भी ले लो,बाबर भी ले लो” राम जो हर हिन्दुस्तानी के रोम रोम में बसे हैं,उनमे और एक लुटेरा जो हिंदुस्तान को लूटने के इरादे से यहाँ आया था और फिर यहाँ हुकूमत चलाने बैठ गया क्या दोनों में कोई अंतर नही है?अरे राम भी ले लो कोई कैसे कह सकता है राम तो वैसे ही सबके हैं उन्हें तो सबने लिया ही हुआ है उनसे अलग तो कुछ है ही नही।मेरा मानना है कि ईश्वर की उपासना करने के लिए सबूतों की नही विश्वास और आस्था की आवश्यकता होती है और राम में जन-जन की आस्था और विश्वास है।

अभी कल योगी आदित्यनाथ जी की पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में रैली थी।वहां उन्होंने जो भी बोला उनकी एक बात मेरे दिल को छू गई।उन्होंने कहा कि इसी धरती पर रामकृष्ण परमहंस ने साधना करके दुनिया के हिन्दुओं को नारा दिया “गर्व से कहो हम हिन्दू हैं।”वास्तव में मुझे बहुत हैरानी होती है कि आज हम अपने को हिन्दू कहने में शर्म करते हैं।अरे हिन्दू मतलब जो हिन्दुस्तानी है,हिंदुस्तान में रहता है वह मुस्लमान,इसाई ,सिख कोई भी हो सकता है लेकिन नही हमें तो पता नही कौन सा पाठ पढ़ा दिया गया है कि जिसमे हम अपने देश का सम्मान करने में भी शर्म करते हैं।

खैर यह मुद्दा तो इतनी बहस मांगता है कि पूरा दिन इसपर लिखा या बोला जा सकता है लेकिन अभी मैं आज का लेख समाप्त करना चाहूंगी इस उम्मीद के साथ कि मेरे दोस्त थोडा सा विचार करें कि मेरा मत इस गाने को ले कर या अन्य बातों को लेकर ठीक है या मुझे कुछ कोई कहना चाहे तो कह सकता है।मैं सबके विचार जानना चाहूंगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top
+