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असफलता प्रबंधन

आजकल परीक्षाओं का मौसम है कहीं शुरू हो गई हैं तो कहीं होने वाली हैं।हर तरफ माता-पिता,बच्चों और अध्यापकों सभी पर एक तरह का दबाव बना हुआ है।आज से दस-बीस वर्ष पूर्व याद करिए परीक्षाओं का इतना हौवा नहीं होता था।हमारे माता-पिता की और फिर हमारी पीढ़ी में ऐसा तो नहीं था कि लोगों के करियर नहीं बनते थे।आज से भी ज्यादा लोगों ने अपनी प्रतिभा को दिखाया है लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया लोगों का रवैया ही बदलता गया।पहले माता-पिता एक सीमा तक बच्चों की पढ़ाई में हस्तक्षेप करते थे।जैसे उन्हें परीक्षाओं के नज़दीक पढ़ने के लिए कभी समझाना या हलकी डांट लगा देना या उनकी पढ़ाई के लिए क्या इंतजाम हैं यह देख लेना बस इतना तक था लेकिन आज तो मैं अक्सर देखती हूँ कि अभिभावक बुरी तरह दबाव में रहते हैं और इतना दिल से लगाते हैं कि डिप्रेशन का शिकार हुए रहते हैं।आजकल एक और बात बुरी तरह फैशन में है और वह यह कि इन सब बातों के प्रबंधन के लिए साइकोलोजिस्ट नियुक्त किये जाते हैं जो स्कूलों और कॉलेजों में काउंसलिंग करते हैं।हालाँकि मुझे तो सोचकर भी कभी-कभी हंसी आ जाती है कि बहुत सारे काउंसलर तो स्वयं ही अपनी जिंदगी में डिप्रेशन के मारे होते हैं और दूसरों के आगे जाकर उपदेश झाड़कर या समझा कर उन्हें बदलने की कोशिश करते हैं।जबकि वे स्वयं की परिस्थितियों से ही इतने कुंठित और निराश होते हैं कि दूसरों को समझाने में कितने सफल हो पाते हैं यह तो भगवान ही जानें।सोचने की बात तो यह है कि जब से यह सब काउंसलर और साइकोलोजिस्ट के ऊपर लोगों की निर्भरता ज्यादा बढ़ी है तब से कोई डिप्रेशन या मानसिक परिस्थितियां बहुत अच्छी तो नहीं ही हुई हैं।पहले लोग स्वयं ही अपनी परिस्थितियों को धैर्य और बड़ों की सलाह से सुलझा लेते थे लेकिन आज धैर्य तो ख़त्म ही हो गया है और सबसे बड़ी खराबी आज यह हो गई है कि लोगों में प्रतिस्पर्धा बहुत बढ़ गई है।स्वस्थ प्रतिस्पर्धा तो होनी भी चाहिए लेकिन आज प्रतिस्पर्धा का रूप भी बिलकुल विकृत हो गया है।लोग अपनी कम सफलता और दूसरे की अधिक सफलता को बिलकुल पचा नहीं पाते हैं और यही उम्मीद वे अपने बच्चों से भी रखते हैं इसीलिए उनकी थोड़ी सी भी असफलता उन्हें विचलित कर देती है।ज़रूरत असफलता प्रबंधन (फेलियर मैनेजमेंट) सीखने की है।क्योंकि अनजाने में कई बार माता-पिता भी अपने शब्द-बाणों से बच्चों को फेल होने पर आत्महत्या जैसे गंभीर कदम उठाने के लिए उकसा देते हैं।अक्सर माता-पिता अपनी आकांक्षाएं अपने बच्चों के जरिये पूरी करने की कोशिश करते हैं।उनके लिए उनकी इच्छाएँ बच्चों की काबिलियत की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण हो जाती हैं।

वैसे भी सफलता को केवल परीक्षा में आये अंकों से ही नहीं आंकना चाहिए।पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करने वाले बच्चे को ही सफल क्यों समझा जाता है?सफलता के कई रूप होते हैं।आज के दौर में तो इस का प्रदर्शन करने वाले भी बहुत मिल जाएँगे।बच्चों के भी कुछ सपने होते हैं।उनके सपनों को समझने और पूरा करने में अभिभावक और अध्यापकों को भी पूरा सहयोग करना चाहिए।बचपन से ही असफलता को एक हौवा नहीं बनाना चाहिए।माता-पिता और अध्यापकों का बच्चों को यह ज्ञान देना आवश्यक है कि परीक्षा में अच्छे अंक लाना बहुत ज़रूरी है जिससे उनका भविष्य उज्जवल होगा लेकिन यदि किसी भी कारण से बच्चा अधिक अंक नहीं ला पाया या फेल हो गया तो उसे शर्मिंदा या हीनता का एहसास कराने के स्थान पर यह समझाना चाहिए कि असफलता के सकारात्मक पहलू भी हो सकते हैं।असफलता के कारणों को ढूंढ़कर अगर उन कमियों को दूर करने की कोशिश पूरी तन्मयता से की जाए तो सफलता की प्राप्ति अवश्य होती है।ऐसा भी बहुत बार देखा गया है कि परीक्षाओं में असफल होने वाले बच्चे किसी दूसरे क्षेत्र में इतने ज्यादा सफल हुए हैं कि मिसाल बन गये हैं।बच्चों में यदि डिप्रेशन के लक्षण दिखाई दें तो उन्हें नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए।जैसे बच्चा यदि गुमसुम बैठा हो,उदास हो या कुछ छिपाने की कोशिश कर रहा हो तो उसे डांटने की जगह प्यार से पूछना चाहिए तथा उसकी प्रतिभा का आंकलन करते हुए उसकी आगे की पढ़ाई का चयन करना चाहिए।यदि अच्छे अंक न आ पाने के कारण किसी खास कॉलेज या संस्था में सीट नहीं मिल पाए तो उसे हतोत्साहित नहीं होने देना चाहिए वरन आत्मसम्मान के साथ कोई और संस्था या कॉलेज के बारे में सलाह करनी चाहिए।इन सब बातों में अभिभावक किसी विशेषज्ञ या अध्यापक की सलाह भी ले सकते हैं।आज हम उस समय में जी रहे हैं जहाँ मात्र डॉक्टर या इंजिनियर बनना ही एकमात्र विकल्प नहीं रहा बल्कि अनेक क्षेत्र हैं जिनमें आज के बच्चों का भविष्य संवर सकता है।

संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि असफलता को अगर हम सकारात्मक रूप दें तो वह सफलता की सीढ़ी बन जाती है।देश विदेश की कई ऐसी शख्सियतें हैं जिन्होंने इस बात की बानगी बड़ी खूबी से पेश की है और असफलता की सीढ़ी पर चढ़कर ही सफलता प्राप्त की है।विश्व में सबसे अधिक बिकने वाले उपन्यासों में से एक ‘हैरी पॉटर’ की श्रृंखला की लेखिका जे.के. रोलिंग का नाम सभी ने सुना होगा।वह वेटरेस का काम करती थी और उन्हीं दिनों उन्होंने हैरी पॉटर की पहली कड़ी लिखी थी।वह लगभग एक दर्ज़न प्रकाशकों के पास इसे छपवाने के लिए गयी परन्तु एक भी प्रकाशक इसे प्रकाशित करने के लिए तैयार नहीं हुआ।अंत में किसी तरह एक प्रकाशक केवल अपनी आठ साल की बेटी की ज़िद पूरी करने के लिए रोलिंग का उपन्यास छापने को तैयार हुआ।आगे की कहानी तो हम सबके सामने ही है।

इसी प्रकार बिजली के बल्ब के आविष्कारक थॉमस अल्वा एडिसन की कहानी भी हम सभी अपने बचपन से सुनते आये हैं जो काफी शरारती थे और इस कारण उन्हें स्कूल से ही निकाल दिया गया और कहा गया कि यह बच्चा तो कुछ भी सीखने के लायक ही नहीं है।उनकी बची हुई शिक्षा घर पर ही पूरी हुई और उनकी माँ ही उन्हें पढ़ाती रहीं।कई बार असफल होने के बाद उन्होंने बल्ब का अविष्कार किया और उनका कहना था कि “मैं असफल नहीं हुआ बल्कि मैंने दस हज़ार तरीके खोज निकाले हैं,जिनसे बल्ब नहीं बन सकता।” देखिये सोच लेकिन यहाँ यह समझने की ज़रूरत है कि यदि एडिसन की माँ भी उन्हें उनके स्कूल से निष्कासित होने के बाद प्रताड़ित करतीं या स्वयं ही हिम्मत हार जातीं तो आज हमारे पास पता नही बिजली का बल्ब होता या नहीं।

सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का नाम तो हम सबके सामने है ही।आकाशवाणी के ऑडिशन में उनकी आवाज़ को असफल घोषित कर दिया गया पर अपनी क्षमताओं पर उन्होंने भरोसा रखा और हार नहीं मानी तो आज उसी आवाज़ के हम सब दीवाने हैं।सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर की आवाज़ को भी फेल कर दिया गया था और कहा गया कि यह आवाज़ तो इतनी पतली और अलग है कि कोरस में भी गाने लायक नहीं है लेकिन ज़िद की पक्की लता ने अपनी मेहनत और रियाज़ से आज वह मंज़िल प्राप्त की जिसे पाने की चाहत तो क्या लोग सपना भी नहीं देख सकते।

यह तो मात्र कुछ उदाहरण हैं।यदि लिखने बैठा जाए तो यह सिलसिला अंतहीन हो सकता है।आपके हमारे आस-पास भी ऐसे सैकड़ों उदाहरण भरे होंगे बस आवश्यकता है अपनी सोच और नज़रिए को खुला रखने की।

2 thoughts on “असफलता प्रबंधन

  1. “सफल होने के लिए असफल होना अत्यधिक आवश्यक है।” जिन महान हस्तियों ने इतिहास बनाया उनके दृष्टान्त प्रस्तुत करता हुआ बहुत ही प्रेरणादायक एवं सामयिक लेख।बधाई….

    1. आत्मविश्वास और एकाग्रता के साथ परीक्षा दें, सफलता अवश्य मिलेगी।

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