Chubhan Today

आस्था का टकराव : राष्ट्रीयता में बिखराव

– अजय “आवारा” साधारणतया, किसी राष्ट्र के निर्माण की पृष्ठभूमि, संस्कृति एवं आस्था पर आधारित होती है। एक विशेष तरह की संस्कृति एवं एक विशेष आस्था के केंद्र के इर्द-गिर्द ही उस राष्ट्र की धुरी घूमती है। जो आगे चलकर उस राष्ट्र की पहचान के रूप में स्थापित होती है परंतु, यह सिद्धांत हमारे देश…

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सनातन धर्म और संस्कृति से प्रभावित यूरोपीय व्यक्तित्व

सनातन परंपरा एक खुली हुई जीवन-व्यवस्था है, जो भी इसे अपने जीवन में आदर्श व्यवस्था के रूप में अपनाना चाहे, उसके लिए यह बिना किसी शर्त, बंधन या अनुबंध के शुद्ध प्रेम से अपनी बांहें खोले हुए तैयार है। इसकी ज्ञान और भाव-संपदा इतनी अधिक है कि हर व्यक्ति अपनी क्षमता भर झोली और अंजुलि…

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हिन्दी दिवस

चुभन के पाठकों को “हिंदी-दिवस” की हार्दिक शुभकामनाएं। हिंदी हमारी राजभाषा है अतः इसका सम्मान बहुत आवश्यक है।चीनी भाषा के बाद बोली जाने वाली विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा हमारी हिंदी ही है।आज हिंदी राजभाषा,संपर्क भाषा,जनभाषा के सोपानों को पार कर विश्वभाषा बनने की ओर अग्रसर है तो वही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सफलता प्राप्त…

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दो भाषा और कुछ विचार, तमिल और तेलुगु के आचार

आप सब जानते ही हैं कि चुभन पर हमारा प्रयास यह रहा है कि साहित्य, कला और संस्कृति के आधार पर हम पूरे देश को एक साथ लाएं, आपस में एक दूसरे के साथ भावों और विचारों का आदान-प्रदान करें। इस उद्देश्य के तहत हमने बहुत से कार्यक्रम चुभन से प्रसारित भी किये, जिन्हें आपने…

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आधुनिक संस्कृत की पहचान : पद्मश्री वेदकुमारी घई जी

इस वर्ष 30 मई को पद्मश्री से सम्मानित प्रसिद्ध शिक्षाविद और संस्कृत की प्रोफेसर वेदकुमारी घई जी का देहावसान हो गया। आज ‘संस्कृत दिवस’ है।प्रत्येक वर्ष हम श्रावण पूर्णिमा के तीन दिन पूर्व और तीन दिन बाद संस्कृत सप्ताह मनाते हैं। आज के दिन यदि हम उनका स्मरण न करें तो यह दिवस अधूरा ही…

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कला या चमत्कार

हमारी सोच को एक अनदेखे मुक़ाम तक ले जाने वाली, और कल्पना को साकार करने वाली कला ही होती है। ये यक़ीन दिलाती है कि हर चीज़ सीमा में बंधी नहीं होती। किसी भी कला में इतनी शक्ति होती है कि वह मानव-मन को रूहानियत में बदल देती है, क्योंकि कला का सीधा संबंध हृदय…

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चांद ने चुरा लीं रोटियां

1. प्रभो! मेरा लिखा इस सृष्टि का श्रंगार बन जाए, दहकती नफरतों की आग में जलधार बन जाए, झुकाएं लेखनी के सामने खुद शीश तलवारें, जरूरत जब पड़े खुद लेखनी तलवार बन जाए। 2. रहेगी साँस जब तक मैं सदा बेबाक बोलूंगा, उजाले पर अँधेरे की चढ़ी हर पर्त खोलूंगा, भुला देगा समय निर्मम मुझे…

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आम तो ख़ास है

पद्मश्री कलीमुल्लाह खान साहब के साथ कुछ पल….. आज मैं जिनसे आपको मिलवाने जा रही हूं, वे हैं मैंगो मैन के नाम से दुनिया भर में मशहूर पद्मश्री से सम्मानित कलीमुल्लाह खां साहब। खान साहब के साथ बातचीत के कुछ अंश। मुझे खान साहब के साथ बातचीत का अवसर तो मिला ही, साथ ही उन्होंने…

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सावन मास का महत्व

हमारे हर पर्व-त्यौहार का अपना अलग ही महत्व है।साल के बारह महीने के हिसाब से भी इनका अलग-अलग महात्म्य होता है।श्रावण या सावन मास का अपना एक अलग ही स्थान है।साहित्यकारों ने भी जितना इस माह के ऊपर अपनी रचनाएँ लिखीं उतनी किसी अन्य पर नहीं।इसी तरह हमारे बॉलीवुड में भी सावन और बरसात के…

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स्वर्णिम छवि

ऐसा माना जाता है, कि साहित्यकार समाज का पथ प्रदर्शक होता है। गूढ़ विषयों को सरल मानदंड लेकर आम आदमी के सामने प्रस्तुत करना, साहित्यकार के कर्तव्य में आता है। जितना उचित मंथन, उतनी ही सही दिशा समाज के लिए तय हो जाती है और जितना सटीक चिंतन, समाज की उतनी ही संतुलित मानसिकता स्थापित…

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