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बहुभाषी साहित्य का संगम बिंदु – डॉ. स्वर्ण ज्योति

https://chubhan.today/wp-content/uploads/2021/02/bahubhasha-sahitya-ka-sangam-bindu.mp3 भाषा के चिंतन की सार्थकता सिर्फ संवाद मात्र से सिद्ध नहीं हो जाती। जब तक साहित्य के मंथन से भाषा मथी न जाए, तब तक भाषा का सौन्दर्य निखर कर सामने नहीं आता है। यह भारतीय साहित्य का सौभाग्य है कि भाषाओं के जितने भेद, भारत वर्ष में पाए जाते हैं, संभवतः किसी और देश…

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मेजर जनरल ए.के.शोरी जी की पुस्तक ‘Invisible Shades of Ramayana’ पर एक संवाद(भाग 1)

https://chubhan.today/wp-content/uploads/2021/02/Invisible-shades-of-Ramayana.mp3 "कौन सी बात कहां,कैसे कही जाती है। यह सलीका हो तो ,हर बात सुनी जाती है।" प्रसिद्ध शायर वसीम बरेलवी जी ने इस शेर में जो बात कहनी चाही है, वह हम सभी पर कभी न कभी सटीक बैठती है, क्योंकि हममें से अधिकांश लोगों की यह समस्या होती है कि हम तो अपनी बात कहते हैं…

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कबीर और तिरुवल्लुवर:साहित्य की समानताएं

https://chubhan.today/wp-content/uploads/2021/02/कबीर-और-तिरुवल्लुवर.mp3 भाषा का महत्व उसके साहित्य से आंका जाता है। अगर हम यह कहें, कि वास्तव में साहित्य भाषा का श्रृंगार है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हम इस बात को भी नहीं नकार सकते कि साहित्य समाज का प्रतिबिंब एवं दिशा सूचक भी होता है। साहित्य ने हमेशा किसी भी काल एवं क्षेत्र के समाज…

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तमिल साहित्य:उद्गम और विकास

https://chubhan.today/wp-content/uploads/2021/02/तमिल.mp3 यह एक कौतुहल भरा सवाल हो सकता है, कि विश्व की प्राचीनतम भाषा की सूची में कौन-कौन सी भाषाएं आती हैं। क्या हम यह मानकर गलती नहीं कर रहे, कि संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं की जनक है। जब हम प्राचीनतम भाषाओं की बात करते हैं तो ग्रीक एवं अन्य भाषाओं की सूची एका एक मस्तिष्क…

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महिला सम्मान की प्रतीक पुलिस अधिकारी डॉ. सत्या सिंह जी से एक विशेष मुलाक़ात

https://chubhan.today/wp-content/uploads/2021/01/महिला-सम्मान-की-प्रतीक-पुलिस-अधिकारी-डॉ.सत्या-सिंह-जी-से-एक-विशेष-मुलाकात.mp3 " उसने फेंके मुझ पर पत्थर और मैं पानी की तरह और ऊंचा,और ऊंचा और ऊंचा उठ गया।" प्रसिद्ध कवि कुंवर बेचैन जी की इन पंक्तियों के भाव को सार्थक कर दिया है, उस शख्सियत ने,जिनके बारे में आज हम बात करेंगे। उत्तर प्रदेश सरकार में पुलिस अधिकारी रहीं डॉ. सत्या सिंह जी के नाम को कौन नहीं जानता है?पूरे…

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कन्नड़ साहित्य में राष्ट्रवाद:गणतंत्र दिवस पर विशेष

https://chubhan.today/wp-content/uploads/2021/01/कन्नड़-साहित्य-में-राष्ट्रवाद.mp3 विभिन्न काल के रूप में समय का बदलना अनिवार्य एवं स्वाभाविक प्रक्रिया है। इसे हमारी मजबूरी समझिए या नियति। जो समय की चाल से पिछड़ गया वह समाज द्वारा भुला दिया गया है। ऐसी स्थिति में यह अनिवार्य हो जाता है कि हम समय की चाल के साथ चलते जाएं। आदिकाल से ही संचार के माध्यम…

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कन्नड़ साहित्य:उद्गम एवं विकास

https://chubhan.today/wp-content/uploads/2021/01/कन्नड़-साहित्य_उद्गम-और-विकास.mp3 साहित्य को हम देश काल या भाषा की हदों से नहीं बांध सकते।भाषा कोई भी हो,यदि सृजन अच्छा हुआ है तो उसे पढ़ने-सुनने से कोई रोक नही सकता। सूफी प्रेमाख्यानक काव्य के प्रवर्तक कवि मलिक मुहम्मद जायसी जी की कर्मभूमि जायस हम कई बार गए और उनकी मजार पर माथा टेका। हम उस उत्तर प्रदेश की भूमि…

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दक्षिण भारत में हिन्दी साहित्य

https://chubhan.today/wp-content/uploads/2021/01/दक्षिण-भारत-में-हिंदी-साहित्य.mp3 आप सभी को ,वैश्विक पटल पर हिंदी के विशेष उत्सव,'विश्व हिंदी दिवस' की हार्दिक शुभकामनाएं। 10 जनवरी 2006 से इस दिवस को मनाया जा रहा है।इसका मुख्य उद्देश्य हिंदी को अंतरराष्ट्रीय भाषा का दर्ज़ा दिलाना और प्रचार-प्रसार करना है।साथ ही हिन्दी को जन-जन तक पंहुचाना है। हमारे देश की सभ्यता एवं संस्कृति की यही तो विशेषता है…

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कोरोना काल में नया साल

- मेजर जनरल ए.के. शोरी जी के शब्द   वैश्विक महामारी कोरोना हमारे जीवन में अचानक ही नहीं आ गयी।वास्तव में,प्रकृति काफी लंबे समय से हमें संकेत दे रही थी परंतु हम उसकी अनदेखी करने में लगे थे।स्वाइन फ्लू,डेंगू जैसी बीमारियां खतरे की घंटी बजा रहीं थीं,तो वही भूकंप, बाढ़ और तूफान आदि हमारे दरवाजे पर दस्तक…

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शायर राजिंदर सिंह बग्गा जी से एक मुलाक़ात

"मैं अतीत को सिर्फ वर्तमान की प्रेरणा मानता हूं।सुनाने के लिए ज़्यादा कुछ भी नहीं है।मेरा मानना है कि अतीत ही वर्तमान का पाथेय है, मगर जब वह केवल सुनाने की वस्तु हो जाती है तो मनुष्य को बूढ़ा बना देती है।कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने के लिए उदात्त स्मृतियां हमेशा प्रेरणा का काम करती…

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