श्री राम का संघर्ष

हर तरफ कैसा कोहराम, कैसा मातम छाया हुआ है?हर चीज़ अपनी जगह पर स्थिर हो गयी है।कुदरत भी मानो रो रही है।पूरा विश्व ही मौत के आगोश में बैठा है।कब किसकी बारी आ जाए, इसकी शंका हर मन में रहती है।कितने अपनों को हम अपने सामने से जाता देख रहे हैं और कोई अपना अब…

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आधुनिक संस्कृत की पहचान : पद्मश्री वेदकुमारी घई जी

इस वर्ष 30 मई को पद्मश्री से सम्मानित प्रसिद्ध शिक्षाविद और संस्कृत की प्रोफेसर वेदकुमारी घई जी का देहावसान हो गया। आज ‘संस्कृत दिवस’ है।प्रत्येक वर्ष हम श्रावण पूर्णिमा के तीन दिन पूर्व और तीन दिन बाद संस्कृत सप्ताह मनाते हैं। आज के दिन यदि हम उनका स्मरण न करें तो यह दिवस अधूरा ही…

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मुस्लिम बहनों की कांफ्रेंस

किसी भी समाज की उन्नति के लिए आवश्यक है कि उस समाज की महिलाएं अपने मज़हबों को मानते हुए भी प्रगतिशील नज़रिया रखें,परन्तु बदकिस्मती से ऐसा हुआ नहीं।औरतों को पूरी दुनिया में भेदभाव का शिकार होना पड़ा है।भारत में औरतों के संघर्ष कहीं अधिक जटिल रहे हैं और आज भी हैं।ख़ास तौर पर मुस्लिम औरतों…

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अर्णव गोस्वामी की जीत:लोकतंत्र की जीत

लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारिता के पिलर अर्णव गोस्वामी को आज जिस तरह माननीय सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिली और तुरंत रिहा करने का आदेश दिया गया उसने आज सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हमारी व्यवस्था कहाँ जा रही है?आज लोकतंत्र की विजय हुई है।सोचने पर मजबूर होना पड़ रहा है कि…

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किस्सा बगीचे का

ज़रा-सी आहट पर चंद्रशेखर जी की नींद टूट गई।कुछ समय तो उन्होंने शून्य में रहकर दूसरी आवाज़ आने की प्रतीक्षा की।फिर अपने मन को समझाने की कोशिश की कि हो सकता है हवा चल रही हो और पत्तियों की सरसराहट हो रही हो लेकिन मन भला कभी समझाने से समझा है,अचानक उन्हें लगा कि बगीचे…

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अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष : श्रृंखला – 4

International Women’s Day special : Part – 4 विश्व-पटल पर नारी और कश्मीर-दर्शन      – डॉ. अग्निशेखर “शायद जन्मांतरों की एक अव्यतीत स्मृति की तरह तुम मेरे भीतर किसी अबूझ उपत्यका में बहती नदी से निकली बाहर जैसे कोई फिल्मी दृश्य हो या महाभारत सीरियल का कोई अंश ‘मैं वितस्ता हूँ ‘ कहा तुमने…

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उल्लास और सामाजिक समरसता का महापर्व:दीपावली

उल्लास और समृद्धि के महापर्व दीपावली की मेरे सभी पाठकों को हार्दिक बधाई।ईश्वर हम सबको अज्ञान से ज्ञान की ओर,अशुभ से शुभ की ओर तथा अँधेरे से प्रकाश की ओर जाने का मार्ग दिखाएँ। दीवाली ही एकमात्र ऐसा पर्व है,जो भारत में सर्वत्र मनाया जाता है।हिमालय से कन्याकुमारी और गुजरात से असम तक सैकड़ों छोटे-बड़े…

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बहुभाषी साहित्य का संगम बिंदु – डॉ. स्वर्ण ज्योति

भाषा के चिंतन की सार्थकता सिर्फ संवाद मात्र से सिद्ध नहीं हो जाती। जब तक साहित्य के मंथन से भाषा मथी न जाए, तब तक भाषा का सौन्दर्य निखर कर सामने नहीं आता है। यह भारतीय साहित्य का सौभाग्य है कि भाषाओं के जितने भेद, भारत वर्ष में पाए जाते हैं, संभवतः किसी और देश…

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70वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

हम सभी के साथ ऐसा कभी न कभी तो अवश्य ही होता है कि जब हमें लगता है कि हम अपने दिल की बातें किसी के साथ साझा करें लेकिन अक्सर उचित पात्र न होने के कारण हमारे दिल की बातें दिल में ही रह जाती हैं।इधर कई महीनों से मैं सोच रही थी कि…

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संस्कृति के दो रंग, पहचानो अपना रंग

होली, एक पर्व मात्र नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन भी है।होली के रंग तो एक दिन में उतर जाते हैं।क्या जीवन के रंगों का समावेश हमेशा के लिए नहीं कर लेना चाहिए ? जाने-अनजाने, हम जीवन के रंगों को दरकिनार करते जाते हैं।पता नहीं क्यों हम चटकीले रंगों पर उदासीन रंगों को हावी होने देते हैं? क्यों…

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